इंतजार

उसने अपनी डायरी में कई दफा लिखा है की उसे इंतजार करना पसंद नहीं. उसे इतंजार करने से इतनी चिढ है की अगर इंतजार करना किसी व्यक्ति का नाम होता तो वो उसे दस तल्ले से नीचे धकेल देता या फिर उसकी आँखों में मिर्च उड़ेल देता. लेकिन वो उस दिन पहली बार उस कॉफी हाउस की मेज पर बैठा किसी का इन्तजार कर रहा था. और बार बार सड़क की तरफ देख रहा था.

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सड़क उस दिन भी किसी शायर के दिल की तरह तमाम तरह के ख़्वाबों के शोर से गूँज रहा था. सड़क पर चलती गाड़ियां, अपने मोबाइल स्क्रीन्स पर गुम हो चुके लोग, उसे किसी नाटक के ख़राब किरदारों की तरह लग रहे थे. उन किरदारों की तरह जिन्हे जबरदस्ती नाटक का हिस्सा बनाया गया हो. वो सड़क पर बस इन्तजार करती हुई लडकियां देखना चाहता था. और शहर के इर्द गिर्द इमारतों में शराब या कॉफी पीते लड़के. कॉफी हाउस में बैठी लड़कियां अपने प्रेमियों पर किसी बात पर झगड़ रही थी. वो एक पल के लिए उन लड़कियों को तमाचे मारकर सामने वाली सड़क पर इन्तजार करने के लिए भेजना चाहता था और उनके साथ बैठे लड़को  को शराब पिलाना चाहता था. उसे रह रह कर मन में अजीब से ख्याल आते. उसे दुनिया भर के रेस्त्राओं में बैठे इन्तजार करती लड़कियों के चेहरे नजर आते. सुनसान बस अड्डो पर बस के इन्तजार में बैठी लडकियां नजर आती. वो झुंझलाता हुआ बैरे को एक और कॉफी लाने का आर्डर देता और फिर सामने मेज पर पड़ी टिश्यू पेपर उठाकर उगते सूरज का चित्र बनाने लगता. उस दिन उसने ५ कॉफी आर्डर किये और फिर मेज से वो टिश्यू पेपर उठाकर चुपचाप सड़क पर निकल आया. सड़क अब भी वैसी ही थी. भागते हुए लोगो की भीड़ वाली. वो उस भीड़ से थोड़ा झुंझला कर सड़क किनारे बैठ गया. उसने अपने पर्स से एक लड़की की तस्वीर निकाली. कुछ देर देखने के बाद उसने वो तस्वीर फिर से पर्स में रख दी. इस बीच पानी की कुछ बूँदें उसके आँखों में डेरा जमा चुकी थी. उसने अपने जेब से वो टिश्यू पेपर निकाली पर आँखें नहीं पोछी. उसने उस टिश्यू पेपर सूरज के नीचे एक बेंच जैसी आकृति बनायीं. फिर एक लड़के जैसी आकृति बेंच पे बैठे हुए बनायी और बूत बन बैठा रहा.
उस रोज शहर के अखबार के एक कोने में एक तस्वीर के साथ शोक सन्देश का इस्तेहार छपा था. इत्तेफ़ाकन इश्तेहार में छपी लड़की की तस्वीर उसके पर्स में रखी लड़की की तस्वीर से हु ब हु मिल रही थी.