जाने की आवाज़

एक दिन मैं अगर यूँ हीं दुकानदार से एक किलो मसूर की दाल खरीदने के बाद पूछूं की “भैया, आपने जाने की अबतक कितनी आवाजें सुनी है” मुझे अंदाजा ही की मेरे द्वारा इस अप्रत्याशित सवाल पूछे जाने के बाद दुकानदार मुझे मन हीं मन पागल कहे. यह भी मुमकिन है कि एक दिन जब उसके दूकान पर कोई ग्राहक न आया हो और बोरियत से बचने के लिए उसने पांचवीं बार उसने उस दिन का अखबार उठाया हो और अनमने ढंग से अखबार के साहित्य का कोना वाले पेज पर मेरी कहानी पढ़ी हो. इस बात को याद करते हुए वो शायद समझे की मैं एक लेखक-साहिय्ताकार जैसा आदमी हूँ और शायद लेखक साहित्यकार लोग ऐसे ही प्रश्न पूछते हैं इसलिए उसने यह कहने की बजे कि “आप पागल हैं क्या” उसने यह कहा की उसे यह प्रश्न का उत्तर नहीं पता.

मैं यह तो बिलकुल भी नहीं कहूँगा अकी मैं एक खाली आदमी हूँ और कोई काम न होने की वजह से मैं ऐसी बातें सोच रहा हूँ. हाँ, ठीक है मैं मानता हूँ कि मेरे पास काम नहीं है. हाँ लेकिन बस काम न हो पाने की वजह से हीं कोई खाली नहीं हो जाता. आपके गालों पर अगर काफी दिनों तक उन जाने पचाचाने बालों की छाँव न मिले तब भी आप शायद खाली हो सकते हैं. खाली होने के लिए बस काम का न होना हीं जरुरी नहीं है. उस दुकानदार को शायद यह नहीं पता होगा की मैं खाली आदमी हूँ. और उसे पता भी कैसे चले. मैं आये दिन उसके दूकान से सामान खरीद कर ले जाता हूँ. उसे पता है की मैंने कॉलोनी के सबसे महंगे घर का किरायेदार हूँ. उसे लगता होगा की मैं कहीं न कहीं काम तो करता ही होउंगा. उसने शायद इसी बात से अंदाजा लगाया होगा कि मैं खाली आदमी नहीं हूँ. और शायद इसलिए उसने मेरे प्रश्न का जवाब नहीं दिया. उसे अगर पता होता की मैं खाली आदमी हूँ तो शायद मुझपर दया खाकर और पीने के लिए को जूस या कोल्ड ड्रिंक देकर मुझे बताता कि जाने की आवाज कैसी होती है.

मेरी दुनिया से यूँ ऐसे कई लोग गए हैं. मैं एक दम से आश्वस्त होकर यह तो नहीं कह सकता की मैनें सबके जाने की आवाजें सुनी हैं. हाँ, लेकिन मैं कुछ लोगों के जाने की आवाजों को बहुत देरतक सुना है. ये वो लोग थे जो मेरे बहुत करीब थे. इनके जाने की आवाज में एक एम्बुलेंस की आवाज काफी देर तक एक बिनबुलाये मेहमान की आवाज की तरफ शामिल हुई थी. एम्बुलेंस की आवाजें मुझे शैतानों की दुनिया की सबसे शैतान चुड़ैल के गुनगुनाने की आवाज जैसी लगती है. कुछ लोगों के जाने की आवाजों में दरवाजें के धड़ाम से बंद हो जाने की आवाज शामिल थी. वो धड़ाम की आवाज इतनी तेज थी की मुझे काफी दिनों तक कर्कश से कर्कश आवाज भी वीणा के धुन की तरह लगी. एम्बुलेंस के आवाज दरवाजे की धड़ाम वाली आवाज में ये फर्क था की एम्बुलेंस की आवाज जाने वाली को ऐसी जगह ले गयी जहाँ शायद सबकुछ पारदर्शी होता होगा, सबकुछ स्वच्छ, निर्मल, शुद्ध, धवल. वहीँ दरवाजे की धडाम वाली आवाज जाने वाले को कहीं ज्यादा दूर लेकर नहीं गयी. इसी दुनिया में आजाद छोड़कर गयी. बस मेरे लिए वहां एक बड़ा सा ताला लगा दिया. मैंनें खाली समय में कई दफा इनके जाने की आवाज पर कई बड़े-बड़े शोधपत्र अपनी डायरी में लिखें. मैं घंटों इन आवाजों के बारे में सोचता और दुनिया में कई और तरह के जानें की आवाजों से तुलना करता. मैंने टीवी पर एकदिन एक खबर सुनी की एक अभिनेता ने फांसी लागाकर जान ले ली. मैनें उसके दुनिया छोड़ जाने की खबर सुनने के तुरंत बाद उसके जाने की आवाज के बारे में सोचने लगा लेकिन काफी समय तक मुझे उसके जाने की आवाज नहीं सुनाई दी तो मैंने उसकी एक फिल्म का गाना सूना जिसमें उसका किरदार सहायक अभिनेता का था लेकिन गाना उसी पर फिल्माया गया था. मैंने उस दिन यह तय कर लिया कि मेरे लिए उसके जाने की आवाज यही गीत है.

मेरे खबर ऐसे कई अभिनेता और कई ऐसे लोग दुनिया छोड़ के गए थे. लेकिन पता नहीं क्यूँ मैंने बस इसी अभिनेता के जाने के आवाज के बारे में सोचा. शायद इसलिए क्यूंकि मेरी दुनिया में शख्स ऐसा भी था जिसके जाने की आवाज मैनें नहीं सुनी थी. नहीं, वो इस दुनिया से नहीं गया था वो बस मेरी दुनिया से गया था फिर भी मैनें उसके जाने की आवाज नहीं सुनी थी. इसी शख्स ने एक बार मुझसे कहा था की कुछ तस्वीरों में मेरा चेहरा बिलकुल इस अभिनेता से मिलता है. इस शख्स ने इस अभिनेता की उस फिल्म का वो गीत भी मेरे लिए गाकर रिकॉर्ड किया था जिसे मैं उस अभिनेता के जाने की आवाज मान चुका हूँ. शायद यही वजहें हैं कि मैनें इस अभिनेता के जाने की आवाज के बारे में सोचना जरुरी समझा था या सोचा था. “चार कदम बस चार कदम चल दो न साथ मेरे.”

मेरे जीवन का यह शख्स मेरे बहुत करीब था जो अचानक से एक दिन मेरी दुनिया से चला गया था. मैंने उसके जानें की आवाज नहीं सुनी थी इसलिए शायद मैं सालों तक यह यकीन हीं नहीं कर पाया की वो मेरी दुनिया से चला गया है. कई बार कई तरह के जादुई नंबरों को दबाकर मैं उसकी आवाज सुनने की कोशिश करता था पर कभी उधर से कोई आवाज नहीं आती थी. एक दफा एक स्क्रीन पर वो अक्षरों में आई और बिना जुबान से कुछ कहें उसने मुझे कहा कि आई एम् गोन. आई ऍम नोट पार्ट ऑफ़ योर लाइफ एनीमोर. एक्सेप्ट इट.” मुझे एक छोटी सी बात बुरी लगी की ये अंग्रेजी भाषा में कुन बात कर रही. वो हिंदी में भी तो बोल सकती है. उसने दिल दुखाने वाली ज्यादातर बातें अंग्रेजी भाषा में ही बोली थी इसलिए मुझे अंग्रेजी भाषा से थोड़ी सी नफरत भी हो गयी थी. मैंने उसे उस दिन सैंकड़ों दफा देवनागरी लिपि के अक्षरों में हिंदी भाषा में यह कहने की कोशिश की मैं मान ही सकता यह बात. वो अब भी मेरी दुनिया में है. मैंने उसके जाने की आवाज नहीं सुनी है. मैंने कई दफा उस तक पहुँचने की कोशिश की लेकिन हर दफा उसतक पहुँचने में लगने वाले चार क़दमों में से तीसरे कदम पर लगता जैसे सामने कोई बहुत विशाल दरवाजा है जो ताले चाभी से नहीं किसी मन्त्र के उच्चारण से खुलता है. मैंने उन दरवाजों के सामने कई मन्त्र पढ़े.
“मैं अच्छा व्यक्ति हूँ.”
“मैं किसी का दिल नहीं दुखाता.”
“माना शराब पी लेता हूँ लेकिन दिल का साफ़ आदमी हूँ.”
“अबसे कोई भी गलती नहीं होगी जाने अनजाने में भी नहीं, आ जाओ एक बार.”
“मैं बहुत बड़ा आदमी बनूँगा, बहुत मेहनत करूँगा”

मैंने ऐसे कई तरह के मन्त्रों के उच्चारण किए लेकिन वो दरवाजा नहीं खुला. दरवाजे से खाली हाथ लौटने के बाद मैंने एक ऐसे आदमी के बारे में कहानी बुनने की कोशिश की जिसने दरवाजे पर दस्तक देते देते अपने दोनों हाथ खो दिए थे. पता नहीं क्यूँ मुझे अचानक से रोना सा आ गया. शायद अपनी ही बनायीं कहानी के किरदार की हालत पर या खुद की हालत पर. इसलिये वो कहानी पूरी नहीं हो पायी. मेरे अन्दर की हजार कमियों में से एक कमी यह है की मैं रोते हुए कहानी नहीं बुन पाता. एक बार जब मैनें रोते हुए एक कहानी बुनी थी और अपने एक दोस्त को पढ़ाई थी तो उसने कहा था “ये कहानी है? यह कहानी से ज्यादा तो हकीकत लग रही है.” इतना कहकर वो बहुत हंसा था. लेकिन उसकी हंसी थोड़ी अजीब सी थी. वो मेरा करीबी दोस्त था और वो कभी यह जाताना नहीं चाहता था की उसे भी मेरी हकीकत का दुःख है. इसलिए उसने शायद रोने की जगह हंसने की कोशिश की थी. लेकिन मुझे पता था वो एक दिन कभी न कभी मेरी इस बात पर आंसू बहायेगा. हो सकता है वो कोई गेम खेलते खेलते किसी विलेन के मर जाने पर आंसू बहा दे. या फिर कभी बाइक चलाते चलाते रोने लगे. कोई पूछे की क्यूँ रो रहा तो हो सकता है वो बोले की वो आँख में धुल भर गया था बाईक चलाते चलाते. ऐसा कहते हुए हो सकता है वो अपना शीशे वाला हेलमेट छिपाने की कोशिश करे या फिर अपना चश्मा तुरंत निकाल दे. करीबी दोस्त इसलिए भी करीबी होते हैं कि वो साथ रोना नहीं चाहते या फिर यह जताना नहीं चाहते कि उन्हें अपने दोस्त कि फ़िक्र है.

मैं काफी दिनों तक उसके जाने की आवाज के पीछे पागलों की तरह पड़ा रहा. मैंने इस बात को मानने में काफी समय लगा दिया की वो मेरी दुनिया से चली गयी है बिना किसी आवाज के. मैं अब शायद धीरे-धीरे यह यकीन भी करने लगा था की वो जा चुकी है और सभी के जाने की आवाज नहीं होती. कुछ लोग बस ऐसे ही चले जाते हैं. बिना किसी शोर शराबे के. चुपचाप. वो इतनी शांति से जाते हैं की उनके क़दमों की आहट भी महसूस नहीं होती. मैं जिस शहर में पला बढ़ा था उस शहर में भी एक लड़का था जो ऐसे ही एक दिन सबसे दूर चला गया था. वो एक दिन अकेले रणबीर कपूर नामक किसी अभिनेता की रॉकस्टार नामक फिल्म देखने गया और कभी वापिस नहीं आया. न कभी उसकी लाश मिली.कुछ भी पता न चला. कुछ सालों बाद तो यह भी होने लगा था कि उस से जुडी चीजें भी गायब होने लगी. मसलन उसके करे में पड़ा उसका क्रिकेट बैट, उसका गिटार, उसके कपड़े. वो अपने फैमली एल्बम के पुराने तस्वीरों में से भी गायब होने लगा. उसके बचपन की एक सबसे प्यारी तस्वीर थी जिसमें उसकी मां उसे अपने गोद में लिए होती हैं और उसने एक नीले रंग का प्यारा सा उसकी माँ द्वारा ही बुना स्वेटर पहना होता है. अब उस तस्वीर में बस उसकी मां है और उनके हाथ में वो स्वेटर. वो अपनी सबसे पुरानी तस्वीर सी ही गायब हो गायब था. इस दुनिया की तो बात ही छोड़िये. उसके गायब होने से जुड़ी सबसे भयानक यह है कि उसके गायब होने के ४ साल बाद जब मैंने उसकी मां से उसके बारे में पूछा तो उन्होंने चौंकते हुए कहा “कौन विद्युत्. मेरा कोई बेटा ही नहीं. तुम यह क्या सवाल पूछ रहे हो”. मैंने उसकी मां से ज्यादा सवाल नहीं पूछे. मुझे पता चल गया था की अब वो अपनी माँ की स्मृतियों में से भी गायब हो गया है. गायब होने की इससे बुरी घटना मैनें ना ही अपने जीवन में कभी देखी सुनी थी या फिर किसी कहानी में ऐसा होते कुछ सुना था.

बाद के कई सालों बाद जब मैंने रॉकस्टार मूवी देखी तब मुझे फिल्म के एक डायलाग ने चौंका दिया. फिल्म में एक जगह रणबीर कपूर कहता है “पता है, यहाँ से बहुत दूर गलत और सही के पार एक मैदान है, मैं वहां मिलूँगा तुझे.” मैं फिल्म का यह डायलाग सुनकर बहुत डर गया. मुझे लगा विद्युत् भी शायद ऐसे ही किसी मैदान में खड़ा होगा और सबका इन्तजार कर रहा होगा . लेकिन मुझे यह बात बिलकुल डरा गयी क्यूंकि मेरा यह मानना है की सही और गलत के बीच कोई मैदान नहीं है. कोई आसमान नहीं है. वहां बस एक रिक्तता है. शायद विद्युत् ऐसी ही किसी रिक्तता में हैं. मैं भी तो हूँ ऐसी ही किसी खालीपन में सही गलत ढूंढ रहा. शायद यही वजह है कि विद्युत् मेरी स्मृतियों से नहीं गया.

उल्टे काग़ज़ की उल्टियाँ

कभी-कभी मुझे लगता है कि मुझे लिखना छोड़ देना चाहिए और ख़ुद को एक हारा हुआ इंसान मानकर मुझे बस अपने सरवाइवल के लिए लड़ना चाहिए। मुझे इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि मैं कितना कमा रहा हूँ। पहले मैं ऐसा नहीं सोचता था, और मेरे ख़याल से शायद कभी किसी को ऐसे सोचना भी नहीं चाहिए। पर आजकल मुझे लग रहा है कि मैं शायद जीवन में न जाने क्या ही कर रहा हूँ। कुछ भी सही नहीं है। सबकुछ तितर-बितर सा है। ऐसा लग रहा है जैसे सबकुछ ख़त्म सा हो गया है।

मैंने इन दिनों लिखना छोड़ दिया है। मुझे लगने लगा है कि मेरे अंदर लेखक जैसी कोई बात नहीं है। बस कुछ एक जैसे अंत और प्रारूप वाली कहानियाँ लिख देने से कोई लेखक नहीं हो जाता है। जब भी मुझे लगता ही कि मैं अब एक लेखक नहीं रहा तब मैं हरुकी मुराकामी का कोई भी नया उपन्यास उठाता हूँ और उसे पढ़ना शुरू कर देता हूँ। मुराकामी के उपन्यास को पढ़कर लगने लगता है कि जैसे मेरे अंदर भी एक लेखक है और मैं भी कुछ बेहतरीन लिख सकता हूँ। मुराकामी को पढ़ते ही मेरे अंदर कहानियों के कई नए प्लॉट हिलोरे मारने लगते है। कई किरदार मेरे आँखों के सामने ठीक वैसे ही रक़्स करने लगते हैं जैसे सड़ चुकी लाशों में धीरे-धीरे कीड़े बिलबिलाने लगते हैं।

मेरे दिमाग़ में कई सारी कहानियाँ है जो बस इसलिए नहीं आ पाती क्यूँकि मैं उन कहानियों के बारे में सही ढंग से सोचता नहीं हूँ या फिर सोचना नहीं चाहता। एक लड़की जिसकी लाश कुछ दिनों पहले उसके छत पर पड़ी मिली थी वो अब भी इस इंतज़ार में है की मेरे द्वारा लिखा जाने वाला कोई किरदार उसके असली क़ातिल का पता लगाएगा और दुनिया के साथ -साथ उसे भी बताएगा कि उससे जीने का हक़ छिनने वाले शख़्स का चहरा कैसा दिखता है। मेरे उपन्यास की लड़की अभी भी मेरे उपन्यास के उन पन्नों का इतजार करती है जहाँ उसे इस बात का पता चल जाए की आखिर उसे मारा किसने।

मेरी एक कहानी में कुछ बिल्ली के बच्चे गुम है। वो कई दिनों से लापता हैं और उन्हें ढूँढने वाला कोई नहीं। किसी ने इस बात की फ़िक्र भी नहीं की कि वो बिल्ली के बच्चे आख़िर कहाँ गए। ये बिल्ली के बच्चे मुराकामी के किसी उपन्यास में गुम हो गए होंगे। उन्हें मुझसे उम्मीदें है की एक दिन मैं जब उनकी कहानी पूरी कर पाउँगा तो सभी को पता चल जाएगा की वो कहाँ गुम हैं। गुम हो जाने वाली बिल्लियों की तस्वीरें किसी दीवाल पर कैसी लगेंगी मैं इस कहानी को लिखकर महसूस करना चाहता हूँ।

मेरी एक कहानी में किरदार अब भी एक चाय की दुकान में बैठा चाय पी रहा है। मैंने उसे कहा था “अगर तुम्हारी बीवी तुमसे प्यार नहीं करती और वो शादी वाले दिन से ही कह रही है कि वो अपने प्रेमी से बहुत प्यार करती है और उसके साथ ही जीना चाहती है तो तुम्हें एक बार के लिए इसे इसके प्रेमी से मिलवा देना चाहिए और दोनों की शादी करा देनी चाहिए।” यह आदमी काफ़ी अच्छा था। इसने तुरंत ही मेरी बात मान ली और अपनी बीवी से तलाक़ लेकर उसने उसकी शादी उसके प्रेमी से करा दी। यह आदमी जानता है की उसके इस क़दम से उसके घरवाले उसके आस पास के लोग उसका जीना हराम कर देंगे लेकिन ये आराम से इस चाय की दुकान में चाय पी रहा है। इसे बस यह बात कचोट रही है की जब इसकी बीवी अपने प्रेमी के सच्चे प्यार के लिए उसे उससे तलाक़ लेनेपर मजबूर कर सकती है और अपनी बात कहने का हिम्मत रख सकती है तो क्या उसकी प्रेमिका को भी शादी के बाद अपने पति से ये सब कहना ज़रूरी नहीं था? उसे यह सब एक बार कहना ज़रूर चाहिए था। लेकिन इसकी प्रेमिका ने शादी के पांच दिन बाद ही शिमला के माल रोड पर अपनी पति के साथ खींची गयी तस्वीर के कैप्शन में लिखा था ” बेस्ट हबी” इन द वर्ल्ड। यह आदमी चाय पीते-पीते यह सोच रहा है कि क्या उसकी बीवी तलाक़ लेने के बाद उसके साथ खींची गयी शादी वाले दिन की तस्वीर के कैप्शन में यह लिखेगी “बेस्ट हबी इन द वर्ल्ड”।

मैं ऐसी कई कहानियाँ लिखना चाहता हूँ। मेरे पास ऐसी ऐसी कहानियाँ हैं। मेरे अंदर अवसाद का एक काला खंडहर है जिसके ताखों पर ऐसी ही कई कहानियों के पन्ने रखे गए हैं। समानांतर ब्रह्मांड जैसी कोई चीज़ होती होगी तो मेरी कई कहानियों के किरदार किसी न किसी ब्रह्मांड में ज़िंदा होंगे। शराब पी रहे होंगे, किसी से टूट के प्यार कर रहे होंगे या फिर किसी लाश को दफ़नाने के लिए किसी बारिश वाले दिन गिली मिट्टी पर फावड़े चला रहे होंगे। मैं अपने जीवन में बहुत सारी चीज़ें उस तरह से नहीं पाई जैसा मैं चाहता था लेकिन मैं अपनी कहानियों में वो सब ढूँढना चाहता हूँ वो सब पाना चाहता हूँ जो मैं अपनी असल ज़िंदगी में चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि मैं उन बच्चों के बारे में लिखूँ जो जन्म लेने के कुछ ही दिनों के बाद गिनती करना सीख जाते हैं। मैं इन बच्चों के बारे में अपनी किसी एक कहानी में यह लिखना चाहता हूँ की यह बच्चे पिछले जन्म में अपनी प्रेमिकाओं के पीठ के तिल गिनते गिनते मार गए थे। मैं इन बच्चों के बारे में ऐसा लिखने के बाद कभी भी उनके माता-पिता से माफ़ी नहीं माँगूँगा। इसमें माफ़ी माँगने जैसी कोई बात है भी क्या?

तालाब की उस देवी ने मुझसे माफ़ी माँगी थी क्या? मैं जब लकड़ी काट रहा था और लकड़ी काटते-काटते जब मेरी लोहे की कुल्हाड़ी तालाब में गिरी तो कहानी के अनुसार तालाब से तालाब की देवी सोने की कुल्हाड़ी लेकर आई और उन्होंने पूछा की ये तुम्हारी कुल्हाड़ी है। मैंने ना कहा। वो फिर तालाब के अंदर गयी और दूसरी बार जब वो बाहर आयी तब उनके हाथ में चाँदी की कुल्हाड़ी थी। मैंने दूसरी बार भी कहा ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। तालाब की देवी तीसरी बार पानी के अंदर गयी और तीसरी बार वो जब तालाब से बाहर आयी तब उनके हाथ में मेरी लोहे की कुल्हाड़ी थी। उन्होंने मुझे मेरी कुल्हाड़ी मुझे वापिस लौटा दी और मुझसे कहा की तुम बहुत ईमानदार हो। मैं ख़ुश हुआ। वो पानी के अंदर गयी और फिर कभी बाहर नहीं आइ। मैंने थोड़ा इंतज़ार किया। मुझे लगा शायद वो दुबारा वापिस आए और मुझसे कहें की मैं तुम्हारी ईमानदारी से ख़ुश हूँ। इतना कहकर वो मुझे चाँदी और सोने दोनों की कुल्हाड़ियाँ दे दे। और मैं ख़ुशी ख़ुशी अपने घर लौट आऊँ और अपनी प्रेमिका को चिट्ठी में लिखूँ की मैं गाँव वापिस आ रहा तुमसे शादी करने। शहर में मुझे नौकरी मिल गयी है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। तालाब की देवी वापिस नहीं आइ और कहीं किसी गाँव में एक लड़की ने तालाब में डूब कर अपनी जान दे दी। शायद, इसी तरह की लड़कियाँ मरने के बाद दुबारा जन्म लेना नहीं चाहतीं होंगी और उन्हें तालाब की देवी बना दिया जाता होगा। मुझसे किसी ने माफ़ी नहीं माँगी। ना ही उस लड़की ने ना ही तालाब की देवी ने। माफ़ी माँगना हमेशा ज़रूरी है क्या।

माफ़ी माँगना हमेशा ज़रूरी नहीं है। मैं पिछले एक घंटे से ये लिख रहा हूँ और अबतक मैंने बस ढाई सौ शब्द लिखें हैं। मैंने घड़ी से माफ़ी नहीं माँगी है। और मैं कभी माँगूँगा भी नहीं। मुझे लगता है की एक दिन घड़ी को दीवाल से नीचे उतरकर बाज़ार जाना चाहिए और एक जोड़ी अच्छे कपड़े में इंसान की शक्ल में मुझसे किसी बार या शराबखाने जैसी जगह पर मिलकर मुझसे माफ़ी माँगनी चाहिए। मैं सिर्फ़ दस मिनट लेट था और उनलोगों ने उस लड़की को तालाब से निकालकर किसी ख़ाली जगह में जला दिया था। घड़ी को उन दस मिनटों के लिए मुझसे माफ़ी माँगनी चाहिए और बदले में मुझे एक अच्छी शराब पिलानी चाहिए। पर क्या ऐसा मुमकिन है? है? बिलकुल नहीं। मैंने सत्ताईस सालों में अलग अलग दीवारों पर न जाने कितनी घड़ियों को दीवार पर चिपके देखा है। इनमें से कोई घड़ी कभी दीवार से नीचे उतरकर नहीं आई। घड़ियाँ कभी दीवाल से नीचे नहीं आती। ये बस अपनी जगह चिपकी-चिपकी अपने शरीर से वक़्त को ठीक उस तरह नीचे गिरा देती हैं जैसे साँप एक ख़ास समय के बाद अपनी केंचुलियाँ छोड़कर निकल जाते हैं। मेरी कहानियों के कई किरदार इसी तरह अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर वक़्त की इन्हीं केंचुलियों के बारे में बात सोचते हुए फ़ीलिंग नॉस्टैल्जिक जैसे स्टेट्स डालते हैं।