समय यात्री

मैं अपने जीवन में कई तरह के अनुभवों से गुजरा हूँ और मैं इस बात को लेकर पूर्णतः आश्वस्त हूँ कि आने वाले जीवन में और भी कई तरह के अनुभवों से गुजरूँगा. मेरा यह कहना की मैंने कई समय यात्राएँ की है कोई अतिश्योक्ति नहीं है या यह किसी वैज्ञानिक गल्प कथा का कथानक नही है. मैं अब भी कभी पांच साल पीछे चला जाता हूँ. जब भी किसी पार्क या मॉल के किसी रेस्तौरेंट की किसी कुर्सी पर बैठी किसी लड़की को इन्तजार करते हुए देखता हूँ. अचानक से मेरे कमीज की जेब से लेट हो जाने के कारणों की पर्चियां निकलने लगती है. मुझे लगता है मुझे किसी ने मेरे सफ़ेद शर्ट को रंग दिया हो लाल और पीले चेक में. मेरे शर्ट के ऊपर के दो बटन खुल जाते हैं. मेरे जेब में पडा मोंट ब्लांक का वॉलेट अचानक से बाटा के वॉलेट में तब्दील हो जाता है. मेरे अन्दर एक अजीब ढंग की ख़ुशी घर जाती है. मैं उस लड़की से बहुत गुस्से में चिल्लाकर बात करने की जगह प्यार से कहता हूँ “सॉरी लेट हो गया, वो दरअसल आज सारी मेट्रो लेट मिली और बीच में आज 3 4 बसें भी छुट गयी. इसलिए देर हो गयी. देखो मैं तुम्हारे लिए कुछ लेकर आया हूँ.”
अचानक से मेरे कंधे पर वाइल्डक्राफ्ट का एक बैकपेक आ जाता है जिस से मैं उसे एक घड़ी निकालकर देता हूँ और अपने चेहरे पर पूरी दुनिया भर से इकठ्ठा की गयी सच्चाई, मासूमियत और प्रेम के लिए घर बनाते हुए उस से कहता हूँ “हैप्पी बर्थडे”. मैं इस समय में ऐसे धंस जाता हूँ की अगर मैं अपनी जेब से शराब निकालकर न पियूं तो सबकुछ सच हो जाए. मैं समय में फंसा ही रह जाऊं. लेकिन मैं ज्यादा देर समय में पीछे नहीं रह पाता. पार्क या रेस्तौरेंट कि किसी बैठने वाली जगह पर किसी लड़के को अकेले रोते देख मैं अचानक से वापिस चला आता हूँ. वहीँ जहाँ मुझे होना चाहिए. जूस या कोल्ड ड्रिंक की बोतल में शराब मिलकर पीते हुए या फिर पार्क के किसी पेड़ से तोड़े हुए पत्ते को मसलकर कोई कविता सोचते हुए.


मेरे कुछ अनुभव इतने प्यारे हैं कि मैं उन्हें अगर कोई भौतिक दूं तो वो संसार के सबसे खूबसूरत आर्ट पीस माने जायेंगे. आर्ट पीस जो किसी और दुनिया के सबसे कीमती और खूबसूरत धातु से बने हो. जैसे उन्हें छूते हीं उनके ज़िंदा होने का अहसास हो. चमचमाते नीले लाल अबरख के महीन टुकड़ों जैसे जो अभी अभी किसी परी के सपनों के टूट जाने से उनकी आँख से बिखर कर गिर गए हों. मैं जब कभी कभी इन अनुभवों को सोचकर अपनी डायरी में लिखता हूँ तो मेरी डायरी दुनिया के सबसे सुन्दर पक्षी के पंखों की तरह सफ़ेद उज्जवल और हलकी हो जाती है, इतनी हलकी की मेरी डायरी के अच्छे अनुभव वाले यह चंद पन्ने आसमान में उड़कर गायब हो जाते हैं. सुन्दर चीजें हमेशा उड़ जाती है. गायब हो जाती हैं. ऊपर जली जाती हैं. कुछ पहले मंजिल से सातवीं मंजिल तक, तो कुछ उस से भी बहुत ऊपर.


मेरे जितने अच्छे और खूबसूरत हैं उतने ही कुछ बहुत बुरे और काले भी. बुरे अनुभव जोंक की तरह होते है. आपसे चिपके हए. आपके आँखों का नमक इन जोंकों के लिए काफी नहीं होता. आप अपने हाथों से इसे चाहे कितनी भी जोर जबरदस्ती से हटाने की कोशिश करते हैं यह नहीं जाते. इक्का दुक्का चले भी गए तो आपके जिस्म से आपका इतना हिस्सा तो ले ही जाते हैं जिस से आपके शरीर पर कुछ निशानियाँ छुट जाएँ. आप किसकी गिनती करेंगे? बुरे अनुभवों की या फिर जख्मों की निशानियों कि? और कब तक करेंगे. आप हर दिन वहीँ दिन जी रहे हैं. जैसे आप अपने एक दिन के फिल्म विडियो में फंस गये हों. आपको सब पता रहता है कि अब आप शाम के इतने बजे घर से निकलेंगे. किसी ख़ास दूकान पर जायेंगे. दुकानदार को कुछ पैसे देंगे. एक ख़ास तरह की चीज देर तक पीकर लडखडाते हुए घर लौट आयेंगे. रोयेंगे लिखेंगे हँसेंगे गायेंगे कोसेंगे और सो जायेंगे. अगले दिन फिर यही दिन जियेंगे. जैसे आप एक लूप में फंस गये हों.


बुरे अनुभव यह नहीं की आप किसी दिन सड़क पर गिर गये. गिर के बेहोश हो गए या मर गये या मरने के करीब पहुँच गए. आपका सर फट गया. आपके हाथ कट गए. नहीं ये बुरे अनुभव नहीं है. बुरे अनुभव वो होते हैं जब आप मौत से लड़कर वापिस आते हैं और फिर भी कई लोगों के जीवन में अपने आप को जीवित घोषित नहीं कर पाते. कोई आपको इतना मरा हुआ मान लेता है कि आप दुबारा उसके पास जाने की कोशिश भी करते हैं तो खुद डर जाते हुए. आप किसी को डराना भी तो नहीं चाहते. मरे हुए लोगों का दुबारा वापिस आ जाना कितना डरावना होता है. अगर यह डरावना नहीं होता तो संसार में इतनी हॉरर फ़िल्में नहीं बनती. पर यह जरुरी भी नहीं है कि दुनिया की सभी हॉरर फिल्मों में भूत हो. मैंने कई ऐसी हॉरर कहानियां सुनी या देखी है जिसमें भूत प्रेत नहीं थे. इंसान ही थे. आपके मेरे इसके उसके जैसे इंसान. पर यह कहानियां काफी डरावनी थी. बहुत ज्यादा.


कहानियां जिसमें एक इंसान रोजाना शाम को घर लौटकर आता है लेकिन एक दिन घर ही वापस मकान में नहीं लौटता. कहानियाँ जिनमें से अचानक से कोई ख़ास किरदार गायब हो जाता है. बिना किसी साक्ष्य या सुबूत के. ऐसे जैसे वो कभी कहीं रहा ही न हो. कहानियां जिसमें एक आदमी अपने दिल की सारी बात कहकर मिटा देता है. जैसे कागज़ पर कभी कुछ लिखा ही न गया हो. जैसे अभी तक लिखने की खोज ही न हुई हो. जैसे आदमी ने अब तक बोलना सीखा ही न हो. जैसे आदमी अब तक हंसना या रोना जानता ही न हो.


बुरे अनुभवों की डायरियां इतनी भारी होती हैं कि आप उसे उठा कर किसी को पढ़ा भी नहीं पाते. आप उस डायरी पर खड़े होकर या बैठकर लिखते हो और फिर एक दिन उसी डायरी का हिस्सा या किसी के बुरे अनुभव का हिस्सा हो जाते हो. आप दुबारा समय यात्रा नहीं करना चाहते पर आप न चाहते हुए भी गिर जाते हो समय के पीछे. किसी कैंटीन में किसी को मनाते हुए. किसी के हाथों धक्का दिए जाते हुए. टूटते हुए. किसी सड़क पर औंधे मुंह बियर की बोतलों के बीच पानी ढूंढते हुए. अपनी आखिरी बची हुई साँसों में दुबारा समय से पीछे जाकर सबकुछ ठीक करने की बात सोचते हए या फिर बुरे अनुभवों की डायरियों के भारीपन को ठेंगा दिखलाकर बहुत ऊपर जाते हुए.

अच्छे अनुभवों में दी गयी घड़ियाँ चाहे किसी की कलाई पर हो या न हो, बुरे अनुभवों की डायरी में आप समय यात्री बन जाते हैं.

उपन्यास: आँखों में मछलियाँ क्यूँ नहीं तैरती

चैप्टर 1: फिर मिलेंगे

कुछ कहानियों को मैं शराबखानों की मेजों पर बिठाकर शुरू न करूँ तो वो कहीं न कहीं आगे जाकर लड़खड़ाकर गिर सकती है. वो आदमी जो एकदम ऊँचाई से गिरा हो, वो गिरने के नाम से ही डरता है. मैं भी ऐसे ही आदमियों में से एक हूँ। वो चाहें कहानी हो या कोई जीता जागता शख़्स या सड़क पर बिजली का खम्भा, मैं किसी को भी गिरते देखना नहीं चाहता। शायद यही वजह है की मेरी इस कहानी की शुरुआत भी एक शराबखाने से शुरू होती है. शराबखाने से शुरू होने वाली कहानियां कभी बेहोश नहीं होती. वो देर तक आपके शराब में होश बनकर आपके कानों में शहद घोलती रहती हैं.

दोपहर में अमूमन शहर के महँगे बारों में इक्का दुक्का ही लोग होते हैं. वो रविवार कि दोपहरी थी, शायद इसलिए उस दिन बार में अच्छी ख़ासी भीड़ थी. ये बार, उन बारों में से एक था जहाँ लाउड म्यूज़िक नही बजाया जाता था. पूरे बार में मद्धम स्वर में कोई ओपेरा गायिका एक गीत गा रही थी. उसके आवाज़ में कभी कभी अचानक से इतना दुख आ जाता था की बार में अकेले पीने बैठे आशिक़ों, घाटे में चल रहे व्यापारियों और लेखकों के ग्लास एक घूँट में ख़ाली हो जाते थे. मानों जैसे वो उनके ज़िंदगी का आख़िरी ग्लास रहा हो और वो मरने से पहले अपने पसंदीदा ब्राण्ड की शराब चखना चाहते हो. उसने भी उस गायिका के दुःख भरी लय को महसूस करते हुए एक घूँट में व्हिस्की का ग्लास ख़त्म किया था. वो शायद एक लेखक था या आशिक़ या कोई व्यापारी या तीनों हीं.

काँच के उस सुंदर ग्लास में बचे हुए बर्फ़ जितने सुंदर लग रहे थे उतने ही मनहूस भी लग रहे थे. उस ग्लास को देखकर कोई भी नया लेखक अपने डायरी में ये लिख देता की व्हिस्की पीने के बाद ग्लास में बचा बर्फ़ ठीक वैसा ही लग रहा था जैसे प्रेम से सरबोर किसी के हृदय से प्रेम निचोड़ लेने के बाद होता है, सिर्फ़ बर्फ़ ही बच पाती है. हल्की गुलाबी सी बर्फ़.

वो शक्ल और पहनावे दोनों से संभ्रांत घर का जान पड़ता था. उसकी उम्र तक़रीबन 40 साल की होगी. गोरा चेहरा, तराशे गए नैन नक़्श और घनी दाढ़ी। ये जब जवान रहा होगा तब उसकी शक्ल कुँवारी लड़कियों के सपनों में आने वाले लड़कों की तरह होगी. उम्र के इस पड़ाव में भी इसका चेहरा कई जवान लड़कों के दिल में जलन पैदा करने की क़ाबिलियत रखता था. मज़बूत क़द काठी वाले उसके शरीर पर सफ़ेद कुर्ता ऐसे फ़ब रहा था गोया किसी सुंदर अप्सरा ने अपने दुपट्टे से उसके बदन को ढाँक दिया हो. देवताओं की तस्वीरें बनाने वाले पहले कलाकार ने शायद इस जैसे ही किसी शख़्स को देखकर देवताओं की पेंटिंग बनाई होगी. उसके चमकते चेहरे के बीचों बीच दो आँखें इतनी ज़्यादा उदास थी अगर उस बार में कोई कवियित्री मौजूद होती तो एक पुरुष की आँख पर दुनिया की सबसे उदास प्रेम कविता लिख डालती. उसकी भूरी आँखों को देखकर अगर वो कवियित्री अपनी कविता का नाम ‘उदासी का रंग भूरा है’ रखती तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होती.

उस दिन वो काफ़ी समय से बार की उस कुर्सी पर बैठा था. शराब पीने के उसके तरीक़े और बार में आए लोगों से लेकर कुर्सियों तक को बारीकी से देखने के उसके तरीक़े से ये ज़ाहिर हो रहा था की वो शायद किसी का इंतज़ार कर रहा है। उसने अपने होठों पर एक मुस्कान चिपका रखी थी. ये हँसी चिपकी हुई ज़रूर थी पर उस तरह चिपकाई हुई नहीं नज़र आ रही थी जैसे बार में सर्व कर रहे वेटरों ने अपने चेहरों पर चिपकाए थे. उसकी हँसी ऐसी थी जैसे धातु से बने किसी देवता की मूर्ति के मुस्कुराते होठों के छाप किसी काग़ज़ पर उतारकर उसके होठों पर चिपका दिए गए हों या फिर किसी की मुस्कुराहट को किसी ने बर्फ़ की सिल्लियों में क़ैद कर दिया हो. मुस्कुराहटें अच्छे वक़्त के देजा वुओं (Deja Vu) की परछाइयाँ होती हैं. उस दिन उसकी शांत और उदास भूरी आँखें कुछ देर और बार की एक दीवार पर लगी एक लड़की की पेंटिंग को निहारती अगर उसका ध्यान वेटर की आवाज़ से और एक लड़की के चेहरे से भंग नहीं होता.

“दैट्स टेबल नम्बर सिक्स मैम” वेटर ने उसके टेबल की तरफ़ इशारा करते हुए उस लड़की को कहा.
‘थैंक यू” इतना कहकर वो लड़की उसके टेबल की तरफ़ आयी और उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी.

उसने आज 10 साल बाद उसको देखा था. उस शख़्स को सामने देख लेना जिसे देखने के लिए दस सालों तक की तैयारियाँ की गयी हो, घर के अक्वेरीयम में यूनीकॉर्न को तैरते देख लेने से कम नही होगा. वो इंसान जिसका किसी ज़माने में एक पल के लिए आँखों से दूर होना दोज़ख़ का अहसास दिलाता हो वो शख़्स जब एक लम्बे समय के बाद आँखों के सामने दिखे तो मन के भीतर क्या टूटता बिखरता संवरता है वो बस वही जानता है जो दस साल दोज़ख़ सरीखी इंतज़ार की आग में तपता है. इतने सालों के बाद लड़की को देखने के बाद लड़के को लगा था की कुछ बहुत अजीब सा हो जाएगा. दस साल की बेचैनी न जाने कैसा रंग अख़्तियार करेगी वो ये सोच के ही डर गया था. उसे यक़ीन था की उसे देखने के बाद वो एकाएक ज़ोर से चिल्लाएगा की कहाँ थी तुम, क्यूँ चली गयी थी? या फिर बिना कुछ कहें एक थप्पड़ उसके गालों पर धरने के बाद उस से लिपट कर रोने लगेगा. हालाँकि उम्र और वक़्त ने उसके मन को इस तरह ढाल दिया था की उसने अपनी सारी बेचैनियाँ, सारी संवेदनाएँ, शिकायतें, ग़ुस्सा, नफ़रत, प्यार सबको क़ाबू में कर लिया. उसका न बिखरना ठीक वैसा ही था जैसे किसी वैज्ञानिक द्वारा यह उम्मीद करना की उसके द्वारा चौकौर आकार के किसी धातु का एक नए तरह के द्रव में डालने से एक ऐसा नूक्लीअर रीऐक्शन होगा की तबाही मचेगी लेकिन यह नतीजा निकलना की उसने चाय में बिस्कुट डुबोयी थी और बिस्कुट कुछ देर स्थिर रहने के बाद चाय में टूट कर गिर गया.

वो जब अकेला था तब उसे बार का माहौल हल्का हल्का सा लग रहा था लेकिन लड़की के उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठते ही सबकुछ भारी सा हो गया। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उस जगह की हवा में कुछ गाढ़ा सा मिला दिया हो. किसी ने कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर कुछ बटन दबाकर उस बार में हो रही सभी क्रियाओं को थोड़ा धीमा कर दिया हो. वो दोनों कुछ देर के लिए यूँ हीं शांत बैठे रह जाते अगर वेटर आकर यह नहीं पूछता की वो क्या ऑर्डर करेंगे.

उसने एक कोककटेल, एक मॉकटेल और खाने के लिए सीज़र सीज़र सलाद का ऑर्डर दे दिया.
‘हाय, कैसी हो” लड़के ने लम्बे समय की ख़ामोशी को बेहद ही औपचारिक ढंग से तोड़ते हुए कहा.
“ठीक हूँ, तुम कैसे हो” लड़की ने ऐसे जवाब दिया जैसे वो लड़के से दूसरी या तीसरी बार ही मिली हो.
लड़का चाहता था की वो इस सवाल का जवाब दे कि “जैसे छोड़कर गयी थी, वैसा ही हूँ बास थोड़ा बूढ़ा हो गया हूँ.” लेकिन उसने धीरे से टिश्यू पेपर के एक टुकड़े को अंगुलियों से गोल करते हुए कहा “मैं भी ठीक हूँ.”

दस साल। पूरे दस साल बाद वो उसे दुबारा मिली थी. वही गोल-गोल मोटी मोटी बिल्लियों जैसी आँखें, नशे में धुत्त नागों जैसे नाचते घुंघराले बाल, ओस में खिले गुलाबों जैसे हल्के गुलाबी होंठ और इन्हीं होठों के उपर अरसो से क़त्ल करने वाला वो तिल. ऐसा दूसरी बार था जब उसने उसे साड़ी में देखा था. हल्के हरी साड़ी और गहरे हरे रंग के सलीवलेस ब्लाउज़ में हरियाली की देवी लग रही थी. पहले से थोड़ी पतली हो गयी थी और वक़्त की कुचियों ने उसके चेहरे की रंगत को शायद और ज़्यादा निखार दिया था. उन दोनों को साथ बैठे अगर कोई फंतासी कहानियाँ लिखने वाला लेखक देख लेता तो उसके दिमाग़ में देवलोक से भागकर मृत्यलोक में छिप कर मिलने वाले देवी-देवताओं की प्रेम कहानी का प्लॉट ज़रूर बन गया होता.

“अबतक तुम्हारे सारे उपन्यास पढ़ लिए मैंने. वो अभी हाल में जो तुमने लिखी है न उस बूढ़े चित्रकार और उसके मॉडल की प्रेम कहानी. काफी अच्छी है. तुमने लेकिन उस कहानी में उस मॉडल को मार क्यूँ दिया. तुम्हें उसे नहीं मारना चाहिए था. तुम्हारी आदत गयी नहीं अबतक. तुम अब भी कहानियों में लड़कियों को मार डालते हो.”

“कहानियों में किसी को गला घोंटकर एक बार में मार देना और किसी को हकीकत में हर पल हर क्षण मुर्दा बनाते रहना. इन दोनों में से कौन ज्यादा भयानक है? अगर तुम्हे उत्तर पता है तो समझ जाओ कि क्या वजह है कि मैं कहानियों में लड़कियों को क्यूँ मार डालता हूँ. कहानियों में की गयी हत्याएं वो हत्याएं होती हैं जो शायद हकीकत में होने वाली होती हैं पर होती नहीं. कलम चलाने वाले लोग हथियारों से भी ह्त्या करने की जगह कहानियां या कवितायेँ हीं लिखना पसंद करते हैं”.

“तुम बिलकुल भी नहीं बदले. तुम्हारी बातें. तुम्हारी सोच. तुम्हारे फलसफे सब के सब वैसे ही है जैसे पहले थे. क्या तुम अब भी वैसे ही शराब पीते हो? क्या अब भी वैसे ही शराब पीकर तुम रोते हो गिरते हो?”

“नहीं. पहले शराब मुझे पीती थी. अब मैं शराब को पीता हूँ. काफी अंतर है अब.” इतना कहकर वो सेक्स ओन द बीच के स्वाद को अपने होठों पर उड़ेलने लगा.

सामने बैठी वो औरत उसे देखने लगी. जैसे वो इस मुलाक़ात के हर हिस्से में उसे पूरे दस सालों के लिए देख लेना चाहती हो. वो उसे जिन नज़रों से देख रही थी शायद उन्हीं देखने के उन्हीं तरीकों की वजह से लड़कियों को लिखने वाले लोग पहेली की उपमा देते हैं. उसके देखने में काफी प्रेम था. वैसा प्रेम जो सालों बाद उत्खनन के दौरान किसी प्राचीन सभ्यता के अवशेषों सा बाहर चला आता है. ऐतिहासिक, रहस्यमयी, उलझा हुआ लेकिन काफी अजीज. सहेजकर सालों तक रखे जाने जैसा. औरत जब लड़की थी तब उसने इसे ऐसे कभी नहीं देखा था. लड़कियों और औरतों में शायद देखने का भी फर्क होता हो. एक दफा मेरी प्रेमिका काफी सालों बाद औरत के रूप में मिली तब उसने मुझे देखते हुए अपनी नजरें झुका ली थी और अपने पति को देखकर बेवजह मुस्कुराने लगी थी. वो बताना चाहती थी की देखो मैं इतनी खुश तुम्हारे साथ नहीं हो सकती थी. इसलिए मैंने तुम्हें छोड़ा. वो शायद बताना चाह रही थी कि लडकियां बस अपने प्रेमियों को अपनी ख़ुशी की वजह से छोड़ देती हैं. मैंने भी उस दिन अपनी मुस्कुराहट से बताया था कि देखो मुझे मुस्कुराने के लिए आज भी किसी का साथ नहीं चाहिए. किसी का भी नहीं.

वो दोनों बहुत देर तक खामोश रहें. इतने खामोश कि वो दोनों अपनी अपनी खामोशियों पर चिलालाते हुए सुने जा सकते थे. बहुत देर की ख़ामोशी को उसने ठीक वैसे तोड़ने की कोशिश की जैसे तकनीकी के दौर में लड़कियां उनसे प्यार करने वाले लड़कों को व्हाट्सएप पर ब्लाक कर उनका दिल तोड़ने की कोशिश करती थी. खामोशी टूटने की चटकती हुई दस साल पुरानी आवाज औरत ने अपने कानों में महसूस की. उन कानों में जहाँ दस साल पहले इस लड़के के गिफ्ट हुए सस्ते लेकिन सुन्दर झुमके खामोशी से भी महीन आवाज में गाना गाते थे.

“जब मेरा एक्सीडेंट हो गया था और मैंने तुम्हें कई बार बुलाया था कि मुझसे मिल लो एक आखिरी बार देख लो. तब तुम आई क्यूँ नहीं थी. एक बार देख लेती मुझे.” उसने थोड़ी भर्राती सी आवाज में कहा. ऐसी भर्राई आवाजों के नीचे पानी का एक गहरा सैलाब बहता है. अगर कोई इस आवाज की सतह पर हलकी सी चोट करे तो शायद दुनिया एक बार फिर से पानी में डूब जाए. लड़की ने उसकी इस भर्राई आवाज को महसूस किया लेकिन कोई चोट नहीं कि वो चुप रही. उसकी चुप्पी में एक ऐसी लड़की का चित्र था जो घर के अलमीरा में घंटो से वजह नामक एक दस्तावेज ढूंढ ढूंढ कर खीज रही हो.

लड़की की चुप्पी लड़के ने भांप ली थी. उसने शायद उसे अलमीरा में वजह नामक दस्तावेज ढूंढते हुए देख लिया था. लड़के ने अलमीरा के बगल वाले टेबल पर पानी का गिलास बनते हुए फिर से कहा “एक बात बताऊं!”

लड़की ने चेहरे पर बुझी हुई प्यास जैसी शान्ति लाते हुए कहा “हाँ बताओ”

लड़के ने अपने बालों पर हाथ फिराते हुए एक कटे का लंबा निशान दिखाया. “तुम्हें पता है अगर तुम मुझसे मिलने आ जाती तो शायद यह निशान गायब हो जाता. लेकिन शायद यह निशान अबतक मेरे माथे पर इसलिए भी है ताकि तुम देख पाओ कि अपने माथे पर अनदेखा किये जाने का निशान लेकर चलना कितना भारी होता है.”

लड़की अगर अभी पूरी तरह लड़की होती थोड़ी सी भी औरत नहीं होती तो शायद वो बहुत जोर से चलाकर रो रही होती और लड़के की हथेलियों में अपना सर रख दिया होता. लेकिन वो अब 24 साल की लड़की नहीं थी. उसने जींस टॉप नहीं पहना था. वो कॉलेज में नहीं पढ़ा करती थी. वो अब बातों बातों में ‘ओ मेरा बेबी’ कहना शायद भूल गयी थी. वो औरत होने के बहुत भारी भारीपन को अपने कंधे पर उठाकर खड़ी होकर लड़के को चूम नहीं सकती थी इसलिए उसने सामने रखे मोकटेल की जगह लड़के की झूठी गिलास से एक घूँट शराब पी ली. उसने औरत होने के बावजूद अपने अन्दर इतनी सी लड़की बचा कर रखी थी जैसे हम सब अपने अपने जेहन के किसी कोने में हलका सा गिल्ट छिपाकर रखते हैं.

सालों बाद विलुप्त नदियाँ जब अचानक से आस्तित्व में आती है तो बहने से पहले उस समंदर का नक्शा ढूंढती हैं जहाँ उन्हें फिर से शामिल हो जाना है. उस लड़की को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि लड़के से मिलने के बाद उसकी भूमिका भी ऐसी ही किसी नदी जैसी हो जायेगी. लड़के को भी अंदाजा नहीं था की वो इतने सालों बाद लड़की की मोटी मोटी बिल्लियों जैसी आँखों में डूबकर समययात्री बन जाएगा. लड़का अपने आने वाले उपन्यास में एक समययात्री की आत्मकथा ही लिख रहा था. उसे बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि लड़की के साथ यह मुलाक़ात उसे भी एक समययात्री बना देगी. वो फिर से दस साल पहले लौटने लगेगा. पीले कनेर के फूलों पर मुहब्बत के हसीं सपनों का चित्र बनाने लगेगा. गुलाबी दुपट्टों में उलझकर ब्रह्माण्ड के सबसे सुन्दर ग्रह की खोज कर लेगा. एक बहुत ही टुच्ची लेकिन काफी सच्ची फिलोसोफी है. सच्चा और करारा वाला इश्क बस एक बार होता है. बाद में तो हम प्यार का रफ कर रहे होते या फिर फेयर.

वो दोनों उस दिन अगर वहां कुछ देर और रुक जाते तो शायद हो सकता था दोनों या दोनों में से कोई एक समय के पीछे बहुत गहरे तक गिरने लगता. जैसे हम कभी कभी अपनी आँखें बंद करते हैं तो हमें दिखाई देता है की हम पीले और काले डॉट्स के एक बहुत ही अथाह गहराई में गिरते जा रहे हैं. वो दोनों भी शायद ऐसे ही किसी गहराई में गिरने लगते अगर लड़के ने ऐन मौके पर यह नहीं कहा होता कि “दिव्यंका, अब मुझे जाना चाहिए. आज मेरी एक जरुरी मीटिंग थी अपने पब्लिशर से.”
“हाँ, मुझे भी आज अपने वकील से मिलना था. शेखर के प्रॉपर्टीज का मसला था. मुझे भी चलना चाहिए”.

वो दोनों झूठ कह रहे थे और ये बात दोनों को पता थी. दोनों को यह भी पता था की वो ज्यादा देर साथ में रहें तो अपनी ही बीती जिंदगी के किसी कोने में लैंड कर जायेंगे. जैसे कभी कभी रात के घने अँधेरे में आसमान से उड़नतश्तरियां जमीन पर उतरती हैं.

“अपना ख्याल रखना, अभिराम.” लड़के के मोबाइल पर एक बहुत जाने पहचाने नंबर से व्हाट्सएप सन्देश आया. मैसेज के ऊपर एंजेल लिखा था. लड़के ने एक बार मैसेज और एक बार लड़की के चेहरे को देखते हुए कहा “दस साल लग गये तुम्हें मुझे अनब्लाक करने में.” किसी काल्पनिक दुनिया में एक मशीन हैं जिस मशीन में देखते हुए आप रोते हैं तो चेहरे पर खिली खिली सी प्यारी मुस्कान आ जाती है. अभिराम की बार सुनकर दिव्यंका के चेहरे पर भी वही मुस्कान आई. वो मुस्कान जिसके अन्दर शायद दस साल तक का रोना छिपा था.

“हमेशा मुस्कुराती रहना, हम फिर मिलेंगे और हाँ हरी साड़ी में एकदम से प्रकृति की देवी जैसी लगती हो. मेरे हिस्से में ऐसे ही सावन बनकर आते रहने”. अभिराम ने अपनी दस साल पुरानी एंजेल के मैसेज का रिप्लाई किया. दिव्यंका मुस्कुराई. वो शायद एंजेल बनने की ख़ुशी में मुस्कुरा रही थी. जाने से पहले वो काफी देर तक इस बात पर लड़ते रहें की बिल मैं दूंगा, बिल मैं दूँगी. बाद में यह तय किया गया कि अभिराम बिल देगा और बिल जितने की रकम दिव्यंका बाहर सड़क पर दिखने वाले किसी जरुरतमन्द को दे देगी. अभिराम की यही आदत सबसे प्यारी लगती थी दिव्यंका को. अभिराम के अन्दर काफी प्रेम था सभी के लिए. अभिराम उन लोगों में से एक था जो अपने जेब का आखिरी दस का नोट किसी भूखे बच्चे को देकर 10 किलोमीटर पैदल चल लेता था.

दिव्यंका अपनी गाड़ी में बैठ चुकी थी. यह वो समय था जब लोग जा रही हूँ जा रहा हूँ कहने के बाद भी काफी देर तक रुके रह जाते हैं. ढेर सारी प्रेमकहानियां तो वक्त के इसी ठहराव में कालजयी हो जाती हैं. “अब मैं जाती हूँ, ख्याल रखना. फिर मिलूंगी तुमसे. बहुत कुछ है जो तुम्हें बताना है. बहुत कुछ है जो तुमसे सुनना है.”

“तुम भी अपना ख्याल रखना.” अभिराम ने धीमी और प्यार सी आवाज में कहा. उसके इतने कहने के कुछ देर बाद दिव्यंका के गाडी का इंजन शोर करने लगा जैसे वो भी कहना चाहता हो फिर मिलेंगे. दिव्यंका अपनी गाड़ी की पिछली सीट पर पीछे मुड़कर अभिराम को तबतक देखते रही जबतक अभिराम नजरों से ओझल नहीं हो गया. अभिराम भी दिव्यंका के जाने के बाद सड़क पर यूँ ही खड़ा एकटक देखता रहा. जैसे उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि वो दस साल बाद आज फिर से एकबार दिव्यंका से मिला. वो दिव्यंका जिसने दस साल पहले अपने आखिरी वौइस् नोट में कहा था “मैं मर जाना पसंद करुँगी पर तुम्हारा चेहरा कभी नहीं देखूंगी.” वक्त हमेशा बुरे ढंग से करवट नहीं लेता. कभी कभी वक्त भी अपने बुरे सपने से खीजकर उठता है तो उठकर गीली ओंस से सनी घासों पर टहलना चाहता है. बहुत कुछ जो बुरा हुआ है उसको ठीक कर देना चाहता है.

क्रमशः

भाग 2 शीघ्र

यातना

दुःख और पीड़ा के कई ऐसे संस्करण हैं जिन्हें हमने शायद कभी महसूस नहीं किया होगा. मेरे जब एक दोस्त ने कहा कि वो खुश तो है पर कभी कभी उसे ऐसी तकलीफ पहुँचती है जिसे वो किसी की समझा नहीं सकता. मैं उसकी बात सुनता था अन्दर ही अन्दर हँसता था. मुझे लगता था की वो ज्यादा से ज्यादा यह बताएगा की एक लड़की ने उसकी भावनाओं के साथ ऐसा खेल खेला की वो दुखी हो गया है. मैं हंसता इसलिए था क्यूंकि मेरे दिल के पिच पर 1 नहीं 3 3 लड़कियों ने भावनाओं का ऐसा रग्बी खेला था की मैं दुःख की बात करता तो पृथ्वी दुःख के मारे अपने गर्भ से सारे जीवाश्म इंधन अन्तरिक्ष की गहराइयों में यूँ ही जाया कर देती.

मैनें एक दिन ऐसे ही अपने इस दोस्त से पुछा “भाई, तू बता तेरा क्या ऐसे पेन है की मतलब जो तुझे एकदम से खाए जा रहा. बता आज मुझे. मेरे साथ भी कई हादसे हए मैं समझ जाएगा”. मेरा वो दोस्त पहले तो काफी देर तक चुप रहा. उसके चेहरे की रंगत बता रही थी की वो शायद कुछ ऐसा अकल्पनीय कहने वाला है जिसे सुनकर मैं भी गश खाकर गिर जाऊँगा. मैंने उसके चेहरे के भाव पढ़ते हुए कहा “भाई, मैंने बहुत तमाशा देखा है जीवन में. घबरा मत की मैं तेरी कहानी सुनकर इमोशनल कोमा में चला जाऊँगा. तू बस अपनी कहानी सूना.

उसने जब कहानी का पहला वाक्य बोला तब मैं फूट फूट कर हंसा. उसने कहा “मेरे लाइफ में एक लड़की थी”. इस से पहले की वो कहानी आगे और बढ़ता मैंने उसे रोकते हुए कहा की अगर कोई टिपिकल बॉलीवुड जैसी बात बताएगा की एक लड़की थी छोड़कर चली गई इसलिए इतने तकलीफ में रहता हूँ तो भाई मैं तेरी तकलीफ और बढ़ा दूंगा. मेरा दोस्त थोड़ा और गंभीर हो गया और उसने कहा. मेरी कहानी सुन.

“एक लड़की थी. काफी प्यार करता था. वो भी मुझसे काफी प्यार करती थी. मतब इतना की कोई यकीन नहीं कर सकता. काफी सालों बाद एक दिन अचानक से उसने कहा कि मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. अब तुम्हारे साथ आगे जीवन जीना मुझे गवारा नहीं है. तुम मुझे छोड़ दो. चले जाओ. वो मुझसे ब्रेकअप करना चाहती थी. मैंने उसे जाने देना नहीं चाहता था. मैनें उस से कहा “मैं तुहारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ? कुछ भी?”.

“ये दुनिया के सभी आशिक सभी लड़के कहते हैं कुछ भी कर सकता हूँ. तुम नहीं कर पाओगे. बिलकुल नहीं.” लड़की ने अचानक से आवाज में थोड़ी मासूमियत और दर्द लाते हुए कहा था. मैनें उस से कहा “मैं कुछ भी कर सकता हूँ”.

“मछली बन सकते हो? उसने कहा. अगर यह मुमकिन है तो जरुर बन सकता हूँ. मेरे इतना कहते ही मैं एक मछली में तब्दील हो गया. मेरा दम घुटने लगा. इस से पहले की मैं मरता उसने मुझे घर के पीछे हाल में खुदे एक तालाब में डाल दिया. मुझे इसकी इस हरकत से लगा की शायद वो मुझसे प्रेम करती है अब भी इसलिए मुझे तड़पता नहीं देखना चाहती. मैनें प्रेम में यह मछली होना स्वीकार कर लिया. मुझे लगा ये परियों की कहानी जैसा कुछ है जो मेरे साथ हो रहा. शायद वो मेरी कोई परीक्षा ले रही हो. जिसमें मैं पास हो गया हूँ. जल्द ही मैं वापस अपने पुराने रूप में आ जाऊँगा और वो मुझे ढेर सारा प्यार करेगी. यही सोचकर मैं तालाब में तैरने लगा. इस तालाब में मेरे अलावा और कोई मछली नहीं थी. और कोई जीव नहीं था. मैं अकेले इस तालाब में तैरने लगा. कुछ देर बाद जब मुझे भूख जैसा कुछ महसूस हुआ तो मैंने देखा की तालाब में कुछ खाने जैसी चीज रस्सी से डाली गयी है. वो आते की गोलियां थी. मैं खाने की तरफ बढ़ा और मैनें आटे की गोली तुरंत ही खत्म कर दी. लेकिन अचानक से मेरे गले में कुछ हुक जैसा फंस गया. एक बाहरी शक्ति जैसे किसी ऊर्जा ने मुझे झट से तालाब से बाहर खिंच लिया.

मैं मछली बनने से पहले मनुष्य नहीं होता तो मैं बहुत सी चीजें नहीं समझ पाता लेकिन मैं मछली बनने से पहले एक मनुष्य था. मनुष्य वो भी प्रेमी मनुष्य इसलिए मैं समझ गया की मुझे किसी कांटे से खींच लिया है. मेरे सामने वही लड़की थी. उसके साथ कोई और लड़का भी था. वो दोनों हंस थे थे. मुझे लगा अब ये शायद मुझे मार डालेंगे. मैं यूँ तो शाकाहारी मनुष्य हुआ करता था लेकिन मैंने अपने कई दोस्तों को इस तरह से मछली पकड़ कर खाते हुए देखा था. और तो और उसे मछली खाना भी काफी पसंद था.

उसने मुझे मारा नहीं. मैं मरा नहीं. गले में हुक की वजह से मैं काफी देर तक तड़पता था. बहुत देर जब मैं इतना तड़प गया की तड़प की वजह से मेरी मृत्यु हो जाती उसने, मेरे मुंह से काँटा निकालकर दुबारा मुझे पानी में डाल दिया. इतनी यातना मैंने ओने जीवन में पहली बार झेली थी. मुझे लगा था की अचनाक से ये सब एक सपने की तरह खत्म हो जाएगा और मैं अपने घर के बिस्तर पर उठूँगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

तालाब में हर रोज भूख मुझे उस कांटे की तरफ बढ़ाती और मैं हर दिन यूँ ही ऐसे तड़पता रहता. हर दिन वही होता जो पहले दिन हुआ था. मुझे ठीक से याद नहीं है लेकिन तकरीबन ऐसा शायद सौ साल तक हुआ. फिर मैं अचानक एक दिन तालाब से जब बाहर आया तब इंसान के रूप में था. 2 दिन के बच्चे के रूप में. मुझे उसके बाद पाला गया. मुझे प्रेम मिला. लेकिन अब भी कभी कभी रह रहकर मेरे गले में बहुत तेज दर्द होता है. बहुत ज्यादा तेज दर्द. इतना ज्यादा तेज दर्द की मेरी अंगुलियाँ हमेशा उस लड़की की तस्वीर बना देती है. मैं यूँ ही नहीं कहा करता हूँ की मैं काफी तकलीफ में हूँ. ये यातना शारीरिक रूप से इतनी ज्यादा खौफनाक नहीं है जितनी मानसिक रूप से है. इसलिए मैं आये दिन किसी के मुंह से जब किसी लड़की के लिए यह कहते हुए सुनता हूँ की मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर दूंगा, तब काफी डर जाता हूँ. मुझे पता है तु मेरी बात समझेगा.”

कैलेंडर से गायब, एक कपड़े धोने का दिन

काफी सालों की प्रार्थना के बाद एक दिन उसके घर कपड़े धोने का दिन आया. वो बहुत खुश था. वो सुबह से ही सोच रहा था की आज वो सारे कपड़ों की जेबें टटोलकर कागज की पुरानी पर्चियां इकठ्ठा करेगा. इस से पहले जो सामान्य कपड़े धोने वाले दिन रविवार को आते थे, तब उसे उतनी ख़ुशी नहीं होती थी. ख़ुशी होती भी क्यूँ. लौंड्री बैग से कपडे निकाल कर धोने और कैलेण्डर से कपड़े निकाल कर धोने में बहुत फर्क होता है. बहुत ज्यादा फर्क.

उतना फर्क जितना एक कथित रूप से सुंदर न दिखने वाली लड़की और बहुत ज्यादा सुंदर दिखने वाली लड़की में से ज्यादातर सुंदर दिखने वाली लड़कियों से पहली नजर का प्यार होने जाने में होता है. उतना फर्क जब हम सुंदर दिखने वाली लड़कियों के पीठ पर अंगुलियाँ फिराते हुए कहते हैं की मैनें तुम्हारी आत्मा की सुन्दरता देखि है. कम सुंदर दिखने वाली लड़कियों का हमेशा प्रेमिकाओं की सबसे करीबी दोस्त बन जाने और हमेशा हर छिछोरे मजाक पर भी मुस्कुरा देने के बीच के फर्क जितना फर्क.

बहुत ज्यादा गंभीर बात कह देने से बचने के लिए साहित्य लिखने वाले शब्दों में छंद ढूँढने लगते हैं . बतौर लेखक मैंने भी फर्क शब्द को दस बार चिल्लाकर कहने के बाद उसे सर्फ सर्फ सर्फ कहना शुरू कर दिया है और सांवली और कम सुन्दर लड़कियों के बारे में और ज्यादा कहने की जगह वापिस कैलेंडर से कपडे निकालने शुरू कर दिए हैं.

मेरे कैलेंडर में काफी सारे कपडे हैं. 14 सितम्बर 2012 को पहना गया नीले रंग का शर्ट अब काफी गंदा हो चुका है. मैंने इस शर्ट को लौंड्री बैग में वार्डरॉब में कई बार ढूँढा नहीं मिला. मुझे पता था यह कैलेंडर में ही छिपा होगा. कैलेंडर से निकाले गए कपड़ों में घड़ियों और मौसमों की खुशबू होती है. सर्फ़ से भी ज्यादा सुगन्धित खुशबू. कई बार इस से किसी के छुए जाने की भी खुशबू आती है. जैसे इस शर्ट से 14 सितम्बर 2012 की बारिश वाली रात की खुशबू आ रही है. हिचक और शर्म की खुशबू. पहली बार किसी को हकलाते हुए यह बताने की खुशबू की एक बार हाथ से किसी का हाथ पकड़ लेने के बाद, पकडे जाने वाले हाथ की एक सुन्दर परछाई हमारे हाथ में ही रह जाती है. चाहे कितनी तेज झटके से भी हाथ छुडाने की कोशिश कि जाए वो परछाई जाती नहीं. कमीज से खुशबू भी नहीं जाती .मेरे हाथ जब जब कांपते हैं तब मेरे हाथों में उसकी हाथों की वही परछाई नजर आती है जिसे मैंने पहली बार पकड़ा था. यही हाथ मुझे कपडे पानी में भिगोने से पहले रोकती है की कमीज के जेब तो तलाश लो. पुराने दिनों की कोई तस्वीर, दूकान का बिल, कोई खत या कविता निकल आये. आपलोगों ने शायद कभी कैलेंडर से निकालकर कपडे नहीं दिये होंगे इसलिए शायद आपको मेरी बातें तिलिस्मी लग रही होगी. पर इसमें तिलिस्म जैसा कुछ नहीं है. तिल्सिम हमेशा पुराने बीते हुए दिनों में होता है. कैलेंडर में होता है.

काफी दिनों से जब मैं ओंस के देवता से धोने वाले दिनों के भेजने की प्रार्थना कर रहा था तब मुझे पता नहीं था कि मेरे साथ फिर से एक छल होगा. मैंने सोचा था की मैं कैलेंडर से कई दिनों के कपडे निकालूँगा. 14 सितम्बर 2012 के बाद भी मैनें कई ऐसे कपडे पहने थी जिसमें कई तरह के पुराने घड़ियों की खुशबू थी. पहली बारिश की खुशबू से भी ज्यादा सौंधी. एक घड़ी की खुशबू जिसमें हवा में यह लिखा गया था की “मैं तुमसे कभी भी दूर नहीं जाउंगी”. जब हवा में यह लिखा जा रहा था तब कहीं दूर से रेल की पटरियों पर रेल के पहिये प्रेम में विरह के गीतों को चाशनी की तरह मिलाकर गा रहे थे. हवा में रेल की समानांतर पटरियों की कसम भी खाई गयी थी कि भले ही हम अनंत तक न मिले लेकिन एकदुसरे के करीब रहेंगे.

कैलेंडर में मुझे इस घड़ी इस तारीख का कपड़ा नहीं मिला. कैलेंडर ने भी शायद कुछ कपडे छिपा लिए या चुरा लिए. जैसे एक दफा मैंने 12 जुलाई 2016 को उसे एक कीमती तोहफा देने के बाद उस से उसका दुपट्टा चुरा लिया था. दुपट्टा मैनें नहीं चुराया था. दुपट्टा किसी के आने की आहट ने चुराई थी, किसी के आने की आहट इतनी चालाक चोर थी की उसने दुपट्टा मेरे हाथों में रख दिया. वो चली गयी. दुपट्टा मेरे हाथों में ही रह गया. किसी के आने की आहट की चोरी अच्छी थी लेकिन कैलेंडर की ये चोरी बिलकुल अच्छी नहीं है.

कैलेंडर ने मेरे सार कपडे चुरा लिए. कपड़ों के साथ सारे पुराने खत. श्रृंगार के दूकान खरीदे गये सस्ते फेक गोल्ड वाले झुमकों के रसीद. चोकोलेट के पुराने रैपर. कांपते हाथों से लिखे गए कहीं दूर भाग जाने के इशारे. सफ़ेद दुधिया कागजों पर दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्र के मुहर सरीखे गुलाबी होठों के निशान. ट्रेन के टिकट. ट्रेन के बाथरुम के पास 48 घंटे खड़े होकर समंदर लांघने के निशान. सबकुछ चुरा लिए.

कैलेंडर में बहुत नजदीक आ जाने के बाद अब यह 13 नवम्बर 2018 की कमीज मिली है. शायद धोने का दिन इसी लिए आज बिना दरवाजा खटखटाए मेरे घर आया है. शायद यह दिन चाहता है की मैं इस तारीख की कमीज को इतना साफ़ कर दूं की इस से शराब और खून के निशान गायब हो जाएँ. गायब. लेकिन उस तरह से गायब नहीं जिस तरह से लडकियां ऐसे गायब होती है कि अपना दुपट्टा मांगने भी नहीं आती.

इस कमीज से खून, शराब, मोटरसाइकिल, सड़क और आसमान सबके निशान धुल जाने चाहिए. 2 मिनट मृत घोषित करने वाले स्याहियों के निशान भी. एम्बुलेंस की सबसे घिनौनी आवाजों के छींटों के निशान भी. माथे पर पड़े लम्बे टाँके के निशान भी. दुनिया भर के शराब की बोतलों से एक मासूम अँगुलियों के निशान भी. छाती में बहुत अन्दर तक धंसे हाथ छुडाने के निशान भी. मुझे पूरा यकीन हैं की आज अगर ये कपडे नहीं धुले तो दुबारा फिर कभी इस तरह से यह ख़ास धोने का दिन नहीं आएगा. बिलकुल नहीं आएगा.

जब इस कमीज से लिपटे हुए इंसान के सर से बहते हुए खून मजदूरों की तरह शहर की दीवारों पर प्रेम और वफ़ा पर कवितायेँ लिख रहें थे तो क्या वो आई थी? आई थी? लगता है इस कमीज ने मुझे फिर से उसी सड़क पर लेजाकर बेहोश कर दिया है इसलिए मैं बता नहीं पा रहा की वो आई थी या नहीं. मुझे लगता है वो आई थी. कहीं दूर से आई थी. मुझे लगता है. लेकिन मुझे यह अब बिलकुल नहीं लगता की फिर से धोने का यह दिन दुबारा आएगा.