A Sunday

कहानियां कैसे शुरू होनी चाहिए ? एक राजा था एक रानी थी ! ऐसे या फिर कहानियों को किसी और तरह से शुरू करने के लिए थोड़ी शराब पीनी चाहिए और फिर जैसे समझ आये वैसे लिख देना चाहिए. मेरे ख्याल से कहानियों के लिए हमें ज्यादा सोचना नहीं चाहिए. कहानियों को बस ऐसे ही लिख देना चाहिए. कहानियां ऐसे भी तो शुरू की जा सकती है की एक आदमी प्याज छील रहा था. प्याज के छिले जाने से भी कहानी शुरू हो सकती है न. भूख की कहानी अगर प्याज छिले जाने से शुरू की जाए तो क्या बुरा है…. कुछ भी नहीं….. इस दुनिया में अच्छा क्या है बुरा क्या है….

कभी सोचा है ये दुनिया किसी श्वेत श्याम फिल्म की तरह होती तो कैसा होता… बेशक हमें अच्छा नहीं लगता. लेकिन जब अगर किसी ने कभी कोई रंग देखे ही नहीं होते तो ये श्वेत श्याम दुनिया भी सहज और सामान्य होती. अभी जो हमलोग जीवन जी रहें उसमें रोजाना हम कई रंग देखते हैं. हमें ये दुनिया सहज लगती है. हम इसी दुनिया को सच मानते हैं. लेकिन ये भी तो मुमकिन है की हम इस दुनिया के बहुत कम रंग देख पाते हों. बहुत कम रंग. क्या ऐसा मुमकिन हो सकता है की इस दुनिया में जितने रंग हैं या जितने रंग हमने अबतक देखें है उस से भी ज्यादा रंग हो ? हो सकता है न… शायद… हो सकता है…

ये प्याज छीले जाने से शुरू होने वाली कहानी भी एक ऐसे ही श्वेत श्याम दुनिया की कहानी है. एक आदमी जिसकी शक्ल और सूरत वैसी ही हैं जैसे आपके किसी प्रेमी या सबसे ज्यादा पसंदीदा दोस्त की होती है. एक लेखक अपने पाठकों को अपने कहानी के किरदार के बारे में ये बताये बिना भी की किरदार का चेहरा गेरुआ था, सांवला था, आँखें भूरी काली बड़ी छोटी थी, जबड़े चौड़े या छोटे थे, कद काठी लम्बी थी चौड़ी थी या ठिगने कद का था…. ये इतनी बाते बताये बिना भी लेखक अपने किरदार के चेहरे को आपके आँखों के सामने ज़िंदा कर सकता है.. लेखक यहाँ आपकी आँखों को एक विकल दे रहा है… आप अपने-अपने हिसाब से इस किरदार को चेहरा दे सकते हैं.

ये आदमी चौप्पिंग वुड पर प्याज काटते हुए सुंदर लग रहा है. इस आदमी की आँखें थोड़ी नम है. शायद प्याज की वजह से. ये जो शायद शब्द है न बहुत ही जलील शब्द है. पूरी दुनिया में ज्यादातर गलतफहमियां और मुगालते इसी शायद शब्द की वजह से हैं. लेकिन यहाँ इस आदमी की आँखें थोड़ी नम है. ये आदमी अपने किचन में खड़ा है. किचन के ठीक बगल वाले कमरे में मौजूद एक स्पीकर से किसी मरे हुए गायक की एक ग़ज़ल चल रही है. आदमी चले जाने के बाद भी जीवन में ज़िंदा होता है. इस बात को सबसे पहले या तो प्याज से निकलने वाले वो केमिकल जानते हैं या फिर नम आँखें. ग़ज़ल सुनते हुए सिगरेट पीते हुए तथा किचन में काम करते हुए लड़के लड़कियों को शायद सुन्दर लगते होंगे. ये शायद शब्द बहुत जलील शब्द है. ये आदमी अपने किचन के कैबिनेट में मसाले ढूंढ रहा है. हम सब अपने जीवन के कैबिनेट में भी तो अक्सर यहीं ढूंढा करते हैं. मुझे पता है इस सस्ते मेटाफर के लिए लोग मुझे माफ़ नहीं कर पाएंगे. दुनिया में बहुत कम लोग हीं माफ़ कर पाते हैं. उसे भी माफ़ नहीं किया गया था. शायद इसलिए उसके किचन कैबिनेट में ढेर सारे सोया मिल्क के गैलन खाली पड़े थे. अगर ये सोया मिल्क के गैलन भरे होते तो शायद वो आज गरम मसाला और चिकन मसाला नहीं ढूंढ रहा होता.
वो चाहे खाली डब्बे हो या खाली दिल. इनके अंदर का खालीपन आपको समय के पीछे खींचता है. समय के उस जर्रे में जब कुछ खाली नहीं होता. उस आदमी को बार बार पीछे जाना अच्छा नहीं लगता था लेकिन वो सोया मिल्क के खाली गैलन को देखकर थोड़ा पीछे चला गया.

“क्या खाओगी” वेज हो या ननवेज” पहली बार डेट पर जाने वाले आशिकों की आवाज में लड़की के लिए खाना पूछते समय जो खनक होती है न उसी खनकती आवाज से उसने सामने वाली लड़की से पूछा |

उसने थोड़ा मुस्कुराकर और थोड़ा अपने आप को अलग जताने के अंदाज से जवाब दिया “”मैं प्योर वेजेटेरियन हूँ, प्योर. वेजेटेरियन”

“पनीर तो खाती होगी ना”
“अरे पनीर भी वेज थोड़े होता है.. मतलब मैं ऐसा कुछ भी नहीं खाती जो एनिमल्स प्रोडक्ट होता है… यु नो आई एम् अ वेगान”

पहली बार बिहार से दिल्ली आने के बाद जिंदगी में पहली बार एस्केलेटर देखने के बाद मन में जो दुविधा उतपन्न होती है ठीक वैसी ही दुविधा को समझने की कोशिश के दौरान लाये जाने वाले भाव को लाते हए उसने पूछा | “ये क्या होता है”

“अरे वो लोग जो ऐसे चीजें खाते हों जो पूरी तरह से प्लांट्स से ही आती है वो वेगन कहलाते हैं ”

“मतलब दूध तो शाकाहारी होता है… वो भी नहीं पीती..”

“नहीं, उसकी जगह सोया मिल्क पीती हूँ… और इसी मिल्क से और भी चीजे बनती है जैसे तोफू.. सोयामिल्क का पनीर”
“सोया मतलब वो जिससे सोयाबीन का बड़ी बनता है वहीँ न.. न्यूट्रेला वाला”

“हाँ वही वही”

एक भोले भाले बिहारी आदमी को किसी प्यारी सी चश्मे वाली लड़की से प्यार हो जाने के लिए इतना काफी था.

“पता है तो मुर्गा मीट खाते थे लेकिन आज तुम्हारी बातों के बाद अहसास हुआ है की हमको भी ये सब नहीं खाना चाहिए”
“एग्जैक्टली, मतलब जानवरों को मारकर खाना कहाँ सही है… वो भी तो जीव हैं उनके अंदर भी…….”
वो उस से पहले अपनी बात खत्म करती उसने उसकी बात रोकते हुए पूछा “तुम पेटा वेटा से हो का”

“नहीं, पर फॉलो करती हूँ उन्हें. एनिमल लवर हूँ”

“एक बात बोलूं…. मैन आर आल्सो कॉल्ड सोशल एनिमल… एन्ड आई एम् अ सोशल एनिमल” उसने अपने जीवन में एक बार इस से ज्यादा अंग्रेजी नहीं बोली थी. वो इस वाक्य को बोलकर शर्मा गया था. सामने बैठी लड़की भी इस बात को सुनकर शर्मा गयी थी. और जो लड़का समझाना चाह रहा था समझ गयी थी….

उस दिन लड़का लड़की को पहली बार अपने घर ले गया था. उसने लड़की को बताया की अकेले रहता हूँ.

“ये मुर्गा… ये कितना क्यूट है…… कितना कलर फूल है… तुम्हारा पेट है?
“हाँ, हाँ ये.. कूटकूट है मेरा पेट एनिमल… मतलब पेट बर्ड”
आदमी जब प्रेम में होता है तो अचानक से प्यारे वाले झूठ बोलना सीख लेता है. उस आदमी ने ये देसी मुर्गा बहुत दूर बिहारी मार्किट से जाकर खरीदा था. फ़ार्म वाले चिकन खाकर उसका मन भर गया था इसलिए वो आज शाम लड़की से मिलकर आने के बाद इस मुर्गे का चिकन करि बनाने वाला था. आज से वो वेगान हो गया था इसलिए झूठ बोलते हुए और तुरंत एक पेट एनिमल का नाम सोचते हुए कहा की ये कुटकुट है उसका पेट एनिमल मतलब पेट बर्ड….. उसने सोचा नहीं था की जिसे पेट में जाना था अब वो उसका पेट हो चूका है… ये हिंदी और अंग्रेजी के सामान उच्चारण वाले शब्दों के अर्थ में काफी फर्क होता है..

“ये तुम्हारा पेट है तो तुमने इसे बांधकर क्यों रखा है… कितना पेन हो रहा होगा उसको” उस लड़की ने अपना एनिमल लव का एक उदहारण पेश करते हुए कहा.

“अरे पता है बहुत लव करते हैं हम कूटकूट से एकदिन नहीं बांधे थे तो बाहर चली गयी थी और बगल के मिस अंजना की बिल्ली इसको दबोचने ही वाली थी की हम बचा लिए. तभी से हम इसको बाँध कर रखते हैं.”

“कोई नहीं हम इसके लिए एक सेफ हाउस बनाएंगे…. ”

उसकी सिगरेट बुझ चुकी थी और वो उन बीते दिनों की यादों से बाहर लौट चुका था. उसने सबसे पहले किचन में मौजूद उन सारे सोया मिल्क के गैलन को फेंका और एकऑनलाइन स्टोर से कुछ मसाले आर्डर किये और दिन की पांचवी सिगरेट जलाई… सिगरेट बोलते हैं क्या ? नहीं न.. पर उस दिन दिन की उस पांचवीं सिगरेट ने सुलगने के 15 सेकंड बाद एक जानी पहचानी लड़की की आवाज की मिमिक्री करते हुए कहा “क्यों पीते हो इतनी सिगरेट.. मत पीया करो ना……” सिगरेट के इतना कहने पर वो एकबारगी अचानक से कह बैठा की अरे आज से नहीं पियूँगा. लेकिन जब उसे इस बात का अंदाजा हुआ की उसे अब सिगरेटों से बात नहीं करनी चाहिए तो उसने उस सिगरेट का एक लंबा कश लिया और किचन के नल से बुझा दिया. उसने फिर दिन की छठी सिगरेट सुलगा ली. दिन की छठीसिगरेट उस से कुछ नहीं बोली. वो किचेन के स्लैब पर चूल्हे के पास बैठकर तबतबक सिगरेट पीटा रहा जबतक उसके घर के दरवाजे की घंटी नहीं बजी.

घंटी की आवाज सुनकर उसे अंदाजा लग गया था की वो शायद डिलीवरी वाला लड़का होगा जो मसाले लेकर आया होगा. वो अपने बैडरूम में गया और बेडके बगल वाले ड्रावर में अपना पर्स ढूंढने लगा. अक्सर ऐसा कई बार होता है की आदमी किसी चीज की तलाश में होता है और उसे कोई और चीज मिल जाती है. उसकी पहली तलाश यहीं रुक जाती है. उसे उस ड्रावर में दो चीजें मिली. एक उसका वॉलेट और दूसरी उस लड़की की तस्वीर. वो ड्रावर खाली हो चुका था. खाली चीजें खींचती है. समय के पीछे ले जाती हैं. वो उस दिन दूसरी बार समय के पीछे गया.

कमरे में घंटी की आवाज गूंजी थी. वो दौड़कर दरवाजे के पास गया. दरवाजे के पास जाने से पहले उसने ड्राइंग रूम के टेबल पर पड़े बड्डे केक और गिफ्ट को छिपा दिया. वो बहुत खुश था. उसकी प्रेमिका का जन्मदिन था. उसने दरवाजा खोला और उसे सामने पाकर उसको गले से लगा लिया. आदमी जब एकदम अचानक से किसी से लिपट जाता है तब वो उस शख्स का चेहरा नहीं देख पाता. लड़के ने भी लड़की का मुरझाया और परेशान चेहरा नहीं देखा. जब लड़की ने उसे समय से पहले उसके बाजुओं से खुद को छुड़ाया तब लड़के ने पूछा ” क्या हुआ सब ठीक तो है ? परेशान क्यों लग रही हो | अरे तुम्हारा बड्डे है आज हैप्पी बड्डे”

“अतुल, तुमसे मुझे एक जरुरी बात कहनी है | मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह सकती | चीजें ठीक नहीं हैं| मेरी शादी तय हो गयी है | मैं अगले हफ्ते अमेरिका जा रही हूँ | लड़का वहीँ एक कंपनी में मैनेजर है | अच्छी खासी सैलरी है | घर है उसका | तुम्हारे साथ मैंने अपने लाइफ के कुछ अच्छे मोमेंट्स बिताये हैं | लेकिन शायद मुझे लगता है मैं अमेरिका में उसके साथ इस से भी ज्यादा अच्छे मोमेंट्स बिता पाउंगी | तुम मुझे स्वार्थी मत समझना | मतलब अब तुमसे उतना प्यार भी नहीं रहा | अनलव् सा हो गया है धीरे-धीरे|……

“क्या बोल रही हो… मतलब क्या है ये… सब ठीक हो सकता है.. अमेरिका बड़ी चीज नहीं है… आई लव यु.. आई लव यु मोर बहुत ज्यादा… ठीक हो जाएगा सब.. बन जाऊँगा बड़ा आदमी.. तुम्हारे उस अमेरिकन से भी ज्यादा बड़ा आदमी………

“खुली आँखों से देखे गए सपने सच नहीं होते हैं अतुल….”

उसे उस दिन लगा की कभी कभी ऑक्सीजन भी आदमी का दम घोंट सकती है इसलिए उसने एक सिगरेट सुलगा ली और सोफे पर बैठ गया.

“मैं जा रहीं हूँ| शायद अब दुबारा कभी न आ पाऊं. और हाँ प्लीज सिगरेट पीना बंद कर दो”

“जो लोग किसी को इस सिगरेट के बट की तरह रौंदते हुए छोड़कर चले जाते हैं उनके मुँह से ऐसी बातें सही नहीं लगती | तुम जाओ अब | जाओ… नहीं रुको इधर आओ…”

चूमने की आवाज बहुत धीमी होती है लेकिन थप्पड़ हमेशा गूंजते हैं | उस दिन पहली बार उसने उसे थप्पड़ मारा | कई बार थप्पड़ हम किसी को हार्म पहुंचाने के लिए नहीं मारते | कई बार थप्पड़ हम इसलिए मर देते हैं ताकि उसे बता सकें की जिंदगी जब तमाचा मारती है तो कितना दिख होता है |

वो एक थप्पड़ खाने के बाद कुछ देर खड़ी रही | लड़के को तुरंत अपने इस हरकत पर गुस्सा आया और वो उसके पास जाते हुए रोतेहुए बोला मत जाओ… सॉरी…

“तुम जानवर हो | यू आर बार्बरिक लाइक ए वाइल्ड बीस्ट…”

लड़के ने उस लड़की के मुँह से आखिरी बार यही बात सुनी. लड़की दरवाजा बंद के चली गयी. और वापिस नहीं आयी.

वो समय से वापिस लौटा और दरवाजा खोल दिया. दरवाजे के सामने वो मसाले वाला लड़का खड़ा था. उसने उसे पैसे दिए और वापिस अपने किचन में आ गया. आखिरी बार वो लड़की इसी तारीख को एक साल पहले उसके इस घर गयी थी. फ्रीज में आज भी एक बड़े केक था. फ्रीज में जहाँ बड़े केक रखा था वहीँ एक बड़े कटोरे में चिकन के टुकड़े थे. आज सुबह से प्याज छिलने और मसाले खरीदने तक का सारा काम उसने इस चिकन को पकाने के लिए ही किया था.

वो एक मशीन की तरह फ्रीज के पास आया और कड़ाही में चिकन को प्याज के साथ पकने के लिए छोड़ दिया. जबतक चिकन पक कर तैयार होता उसने फ्रीज से केक को निकला और मेज पर रख दिया. केक पर प्यारे अक्षर में लिखा था हैपी बड़े शालिनी. उसने मोबाइल को मेज से थोड़ी दूर इस तरह रखा की वो केक काटते हुए खुद को रिकॉर्ड कर सकें. वो चाहता था की वो उसे ये वीडियो भेजकर से हैप्पी बड़े विश करे. केक काटते हुए वो थोड़ा रो रहा था. ठीक वैसे ही जब वो सुबह सुबह कूटकूट की गर्दन काटते हुए रो रहा था. वो रोने के बाद शैतान बन जाता था. शायद इसलिए उसने आज कुटकुट को काटने के बाद उसे कह जाने की सोची. वैसे भी आज रविवार का दिन था और उसने शराब पी थी. शराब पीने के बाद आदमी या तो शैतान बनता है या भगवान.

चिकन पक कर तैयार हो चुका था. वो मेज पर चिकन और शराब लेकर बैठ गया और चिकन खाने से पहले उसने शालिनी को एक वीडियो भेजा. ये वीडियो वो वीडियो नहीं था जो उसने केक काटते हुए रिकॉर्ड किया. इस वीडियो में वो कूटकूट को एक तेज चाक़ू से काटते और मुस्कुराते नजर आ रहा था.

वीडियो भेजे जाने के बाद उसे तुरंत शालिनी का एक मैसेज आया. उसने मैसेज खोलकर पढ़ा नहीं. उसे पता था उस मैसेज में क्या लिखा होगा “”तुम जानवर हो | यू आर बार्बरिक लाइक ए वाइल्ड बीस्ट…” उसने मोबाइल को बंद कर के एक तरफ रख दिया और शराब के एक लंबा घूँट लेने के बाद चिकन का लेगपीस खाने लगा.

सरजू जी

सरजू जी ।

सरजू जी आज सिंगल है। सिंगल इसलिए नहीं है कि कोई भाव नही मिल रहा। इसलिए सिंगल है कि क्योंकि वो भेटरन आशिक हैं। उनकी माशूका उनके लाइफ से टाटा बाय कह के चली गयी है लेकिन उ अभी तक इसको मान नहीं पाए हैं। और ऐसा लगता है जल्दी मानेंगे भी नहीं। और मेरे ख्याल से मानना भी नही चाहिए । मतलब उनका कहना है कि इश्क़ प्यार चार आना वाला लेमन चूस नही है कि 1 रुपैया में चार गो खरीदे। जीभ पर रख कर कुछ देर चुभलायें और फिर दांत से कडर मड़र कर के खा जाएं। सरजू जी का जो प्रेम पर दर्शन है वो बहुत ही सहज और सच के ओज से लबरेज है। उनका मानना है कि एक दफा आदमी किसी से सच्चा प्यार कर ले तो वो उस से कभी नफरत कर ही नहीं सकता। भूल ही नही सकता। सच्चा प्यार आदमी को इतने मोमेंट्स दे देता है कि वो उस मोमेंट्स को अपने दिमाग के डीवीडी प्लेयर पर रिवाइंड कर कर के 7 जन्म खुशी से बिता ले। सच्चे प्रेम में खयाल होता है मलाल नहीं होता।

सरजू जी को उनकी प्रेमिका के जाने का मलाल है लेकिन प्रेम करने का कभी मलाल नही हुआ । सरजू जी उस दौर में गमछा बांध के आशिकी किये है जब बिहार में लइका सब को दिन दहाड़े रोड से उठा लिया जाता था। उस दौर में 50 रुपैया वाला करियक्का चश्मा पहिने मोटरसाइकिल का अगिलका चक्का कर जब उ अपनी माशूका के सामने से गुजरते थे तो उनकी माशूका अपनी मम्मी के साथ होते हुए भी नजरें बचा के आंख मार देती थी। ये अलग बात है कि आंख मारे जाने के बाद सरजू जी रोड पर मोटरसाइकिल और गमछा के साथ छितरा (बिखर) जाते थे। सरजू जी बिहारी थे। एकदम विशुद्ध बिहारी इसलिए वो रोड से उठते थे। दुबारा मोटरसाईकल को किक मार के स्टार्ट करते थे और गमछा बांधते हुए निकल जाते थे। उनको मलाल नही होता था।

सरजू जी ने अपने घर के सिलिंडर से ज्यादा अपने माशूका के घर के सिलेंडर लाये हैं। सरजू जी इस बात को बेहद गर्व के साथ बताते हैं। उन्होंने बाकायदा इस सिलेंडर लाने के आंकड़े को एक डायरी में लिखा भी है। और इस आंकड़े के लिए उन्होंने खुद के द्वारा बनाये गए पुरस्कार ‘हाउसहोल्ड आशिक ऑफ दी मिलेनियम’ का खिताब भी दिया है।

सरजू भी नारी का सम्मान करने वाले आशिक है। उनकी माशूका की मम्मी ने जब सरजू जी का चिट्ठी पकड़ लिया था और घर पर बुलाकर क्लास लिया था तब सरजू जी ने मर्दाना शान में एक बार भी नही कहा कि आपकी बेटी भी लाइन मारती है और चिट्ठी लिखती है। सरजू ने सारा इल्जाम अपने सर ले लिया था। सरजू जी ने कभी प्रेम में ईगो नही रखा। कलम दवात, कटर पेंसिल, विदेशी सिक्कों का कलेक्शन, क्रिकेट सम्राट के तस्वीरों से बनाया हुआ क्रिकेटरों का कोलाज, चम्पक नंदन बालहंस जैसे किताबों का संकलन। यही सब एक जमाने मे सरजू जी की संपत्ति थी। सरजू ने ये सारी संपत्ति अपने माशूका के नाम कर दी थी। एक जमाने मे टिनहिया (टीनएजर) आशिकों के लिए ये चीजें के लिए खजाने से कम नहीं होती थी पर सरजू जी को अपनी माशूका के आगे हर खजाना कोयले का टुकड़ा नजर आता था।

सरजू जी मैथ में बकलोल थे इज़लिये कॉमर्स लिए थे। उनको फिजिक्स केमिस्ट्री मैथ समझ नही आता था लेकिन जब उनकी माशूका का फिजिक्स वाला असाइनमेंट बनाना होता था तो वो रात भर जागकर एचसी बर्मा पढ़ते थे और फिजिक्स का असाइनमेंट तैयार करते थे। इतना फिजिक्स वो खुद के लिए कभी पढ़ते तो आज कुछ और हीं होते। मतलब सरजू जी ने आशिकी का जो क्रैश कोर्स किया है वो बिरले लोग ही कर पाते हैं।

सरजू जी को संगीत का एबीसीडी भी पता नही था लेकिन अपनी माशूका को रिझाने के लिए उन्हीने एक माउथ ऑर्गन खरीदा और यूट्यूब पर काफी घण्टे बर्बाद कर के शोले वाली वो धुन सीखी जो अमिताभ बच्चन जया जी को देखकर बजाते थे। सरजू जी न जाने कितनी राते अपनी बालकनी में बैठ कर अमिताभ बच्चन बने है वो बस सरजू जी और उनकी जया जी हीं जानती है।

सरजू जी बहुत बड़े वाले लभर आदमी थे। खाली लभ किये लाभ का नही सोचें। और ऐसा नहीं था कि उनकी माशूका उनसे कम प्यार करती थी। उस जमाने में और उन स्थितियों में उनकी माशूका ने भी उनसे 4 कदम आगे का ही प्यार किया था लेकिन वो कहते हैं न वक़्त बदलता है। वक़्त बदला। सरजू जी वहीं का वहीं रह गए। लेकिन वक़्त के साथ उनकी माशूका बदली। माशूकाये लड़कियां होती हैं। लड़कियों को त्याग करना होता है। लड़कियों को अपने परिवार अपने परिवार के समाज के लिए सबसे पहले अपने प्रेम का त्याग करना होता है। शायद इसलिए एक दिन सरजू जी फोन पर जब हेलो हेलो करने के बाद कहें कि अरे केंने (किधर) गयी? अरे सुन रही हो। आवाज नही आ रहा। अरे नेटवर्क में आओ न जी। ए हे अरे अरे हेलो हेलो अरे हम सरजू ही बोल रहे अरे अरे अरे ………।

सरजू जी की अब उससे बात नही हो पाती। सरजू जी को अपनी माशूका से मिले लगभग 1 साल से ज्यादा हो गया है और फोन पर तबियत से बात किये 9 महीना से ज्यादा। उनकी माशूका अब शायद सरजू जी से कोई नाता नहीं रखना चाहती। लेकिन सरजू जी लभर हैं। बिहारी लभर। सरजू जी कहते हैं कि अरे वो प्यार नहीं करती है तो न करें हमसे जितना बन रहा है अकेले में तो कर रहे हैं। क्या दिक्क्त है। सरजू जी अकेले ही माशूका का केक लाकर बड्डे मनाते है डांस करते है दारू पीते हैं फिर थोड़ा देर आंख छोटा करके नेपालियों की तरह उ उ कर के रो लेते हैं।

सरजू जी के डायरी का जखीरा मिला था आज। उनकी आशिकी देख के हम एकदम से स्पीचलेस हो गए। सरजू जी बता रहे थे कि कैसे अभी भी कई बार जब वो घर मे अकेले होते है तो अपनी माशूका का 6 साल पहले लिया गया दुपट्टा ओढ़ के सो जाते हैं। सरजू जी ये बात एकदम शान से हंसते हुए बताते है लेकिन मैंने देखा है कि कब भी वो ऐसी बाते करते हैं तो उनकी आंखें छोटी हो जाती है। उन छोटी हो चुकी आंखों में मैं पानी ढूंढने ही वाला होता हूँ कि सरजू जी कहते है “अरे अब हो गया जो होना था तुम एक काम करो थोड़ा सा बर्फ लिया दो। आज मन कर रहा है 3 पैग मारकर चैन से सो लें।”

मैं बर्फ लाने चला जाता हूँ। मुझे पता होता है कि मेरे जाने के बाद उनकी आंखें फिर से छोटी हो गयी होंगी। सरजू जी की आंखें भले ही छोटी हो जाती हो लेकिन दिल कभी छोटा नही होता। लभर आदमी है सरजू जी।

दरवाजे

कभी ऐस सोचा है कि ये जो दुनिया, जीवन, भाग दौड़, संघर्ष, शादी, नौकरी, जन्म, मृत्यु, देश विदेश, धर्म मजहब, सफलता असफलता इत्यादि जैसे तमाम चीजें जो हमारे लिए अहम और गंभीर है वो किसी और के लिए महज एक खेल जैसा है।

आज जो तुम किसी के जाने का, वादे न निभाने का या धोखा देने का जो मातम मना रहे हो, हो सकता है इस बात की पूरी अवधारणा ही एकदम अलग और विलक्षण हो। तुम्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं कि जिस दुनिया में तुम जी रहे हो वो दुनिया सिर्फ उन लोगो की ही है जिन्हें किसी और दुनिया मे कोई और छोड़कर या धोखा देकर चला गया हो। इसका मतलब की इस दुनिया में तुम इसलिए हो क्योंकि तुम्हें किसी और दुनिया में कोई छोड़कर या धोखा देकर चला गया। इस दुनिया मे तुम्हें फिर से छोड़कर जाने वाला भी शख्श ऐसा शख्स है जिसे किसी और दुनिया में धोखा मिला या कोई उसे छोड़कर चला गया। तुम दोनों ही इस बात से अनजान रहे हो और तुम्हे बाकी दुनिया के किसी भी बात का कोई अंदाजा नही है।

इस दुनिया मे भी तुम्हारी प्रेमिका तुम्हे छोड़कर जा चुकी है। तुम इस दुनिया के बाद अब उस दुनिया में जाओगे जहां तुम फिर किसी और से बेवफाई करोगे और जिस से बेवफाई करोगे वो फिर से ऐसी किसी दुनिया में पहुंचेगी जहां सिर्फ ऐसे लोग है जिनके साथ बेवफाई हुई हो।

ये न एकदम लूप जैसा है। अलग-अलग दुनिया में ये सारी प्रेम कहानियां चल रही है। किसी मे तुम सताने वाले हो किसी मे सताए जाने वाले हो।

ये भी हो सकता है कि कोई एक और अकेला इंसान एक स्क्रीन के आगे बैठकर इन सारी दुनिया में घट रही प्रेम काहानियों को घटते देख रहा हो और एक नोटबुक में प्रेम काहानियों के नए-नए प्लॉट्स नोट कर रहा हो। हो सकता है ये आदमी अपनी दुनिया का एक टुच्चा सा लेखक हो जो इतनी सारी प्रेम काहानियों के प्लॉट्स कॉपी कर अपनी दुनिया के किसी बड़े टीवी शो के लिए कहानियां लिखता हो या फिर प्रेम काहानियों पर उपन्यास लिखकर एक बेस्टसेलर लेखक बन गया हो।

अंत मे ये भी मुमकिन है कि इतनी सारी दुनिया के सिमुलेटेड प्रोग्राम को अपनी कंप्यूटर स्क्रीन पर रन करने वाला ये लेखक अपनी दुनिया में किसी से धोखा खा के बैठा हो।

प्रेम त्रिकोण के बारे में तुमने सुना होगा और तुम्हें लगता होगा कि ये इतना कॉम्प्लिकेटेड है। पर क्या तुमने प्रेम के पैराडॉक्स के बारे में सुना है? ये न लव ट्रायंगल से लाख गुणा ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड है। इसमें न एक प्रेमी एक दरवाजा खोल के सफेद रौशनी वाले कमरे में घुसता है। एक लड़की से मिलता है उसे प्यार करता है लेकिन उसके हाथों ही कत्ल होकर मारा जाता है। कमरे में अंधेरा होता है। फिर दुबारा उजाला होता है। यही लड़का फिर एक दरवाजे के अंदर घुसता है। सफेद रौशनी वाले कमरे में एक दूसरी लड़की होती है। ये लड़की इसे देर तक प्यार करती है लेकिन ये उस लड़की को मारकर फिर आगे के दरवाजे में घुसता है। यहां फिर से उसे वो लड़की मिलती है जिसने उसे प्यार करने पर पहली दफा मारा था। ये लड़का फिर उस लड़की को प्यार करता है और मर जाता है। ये घटना एकदम हर बार लूप में रिपीट होती है। इस पूरे घटना में दो चीजें हमेशा समान होती हैं। मारे जाने वाले लड़के की शक्ल नही बदलती और वो हमेशा बस एक ही लड़की के हाथों मारा जाता है। इस लड़के को मारने वाली लड़की की भी शक्ल नहीं बदलती। हां, कमरे में हमेशा वो लड़की बदलती है जो जिसे लड़का मार देता है।

डेविड अल्बर्ट

डेविड अल्बर्ट एक बहुत ही बेफिक्र और मस्त रहने वाला लड़का है. डेविड अल्बर्ट बेफिक्र, मस्त लापरवाह होने के साथ-साथ संवेदनशील है. वो अपने दोस्तों के बीच एक सीक्रेट डैन्क मेमे संगठन नामक ग्रुप चलाता है जिसपे वो बेहद ही असंवेदनशील चुटकुले और मीम साझा करता है. इसके बावजूद भी डेविड अल्बर्ट बेहद संवेदनशील है.

डेविड अल्बर्ट सुबह सुबह थाई इंस्पीरेशनल विडियो देख के रोता है. फिर अमेरिकाज गोट टैलेंट के विडियो और केबीसी का सुशील कुमार वाला विडियो क्लिप देख के मोटीवेटेड होता है. डेविड अल्बर्ट मेहनती है पर नल्ला है. इसलिए वो अपने मेड का भी मेड है. अपने ड्राईवर का भी ड्राईवर है. डेविड अल्बर्ट एकदम जमीन से जुड़ा आदमी है. वो दूध का चाय भी पी लेता है. दूध न होने पर वो निम्बू वाली लाल चाय भी पी लेता है. निम्बू न हो तो वो काली चाय पी लेता है. चायपत्ती न हो तो वो गरम पानी पी कर खुश रहता है. पानी गरम करने के लिए इंधन न हो तो वो खाली गिलास के खालीपन को अपनी जिंदगी के खालीपन से जोड़ते हुए एक प्यारी सी कविता लिखकर खुश रहता है.

डेविड अल्बर्ट थोड़ा कमीन है लेकिन दिल का साफ़ है. थोड़ा अय्याश भी है. लेकिन वो मानता है की अय्याशी भी ऐसे हो की हदें न टूटें. वो शिवा सहगल भी पीता है, पीटर पारकर भी पीता है, नम्बर 1 भी पीता है, बालेन्द्र प्राइड भी पीता है, कभी जब जेब ढीली हो तो वो ऑटो स्टैंड वाले देसी ठेके में ऑटो चालकों के संग देसी भी पी लेता है. डेविड अल्बर्ट को आस पास के लोग हीरा कहते हैं. डेविड अल्बर्ट को थोड़ा लगता भी था की वो वाकई एक हीरा है जिसे पहचानने वाला कोई जौहरी नहीं है, लेकिन जब एक दिन उसे पता चला की लोग उसे हीरा नहीं हेरा ठाकुर कह ते हैं तो उसे बुरा लगा. उसे आस पास के वो लोग बहुत धोखेबाज लगने लगे, जिनके घर वो जरूरत पड़ने पर सिलिंडर पहुंचाता था, टीवी खराब होने पर टीवी बना देता था. उनके बच्चो के कंप्यूटर में फ्री में विंडोज एक्सपी चढ़ा देता था, रक्षाबंधन के दिन मोहल्ले के सभी अंकलों आंटियों के बेटियों से ख़ुशी ख़ुशी राखी बंधवा लेता था, उन मुहबोली बहनों को आशीर्वाद के साथ-साथ पैसे भी दे देता था.

एक दिन हद तो उस दिन हो गयी जब उसकी पुरानी प्रेमिका निकी मिन्हाज ने उसे साफ़ साफ़ कह दिया की अब वो उस से कोई रिश्ता न रखें. अब वो ज्यादा दिन इस रिश्ते को ढो नही सकती. यही वक्त है की वो अब अपने जीवन पर ध्यान दे और अपने पैरों पर खडा हो जाए नहीं तो कोई लड़की उस से शादी नही करेगी. निकी मिन्हाज ने ये भी कहा की अगले महीने उसकी शादी पालनगर के शॉन पाल से हो रही है. अब वो उसे भूल जाए. उस दिन अल्बर्ट डेविड दुखी तो हुआ लेकिन उसे निकी मिन्हाज की ये साफगोई अच्छी लगी. उसे अच्छा लगा की निकी मिन्हाज ने उस से बिना किसी ड्रामा और रोने धोने के रिश्ता तोड़ लिया. और तो और निकी मिन्हाज ने उस से वो 15 हजार रुपये और वो सारे गिफ्ट भी वापस नही मांगे जो उसने रिलेशनशिप के दौरान उसे दिए थे.

उस दिन डेविड अल्बर्ट दुखी तो था लेकिन मन ही मन उसने निकी मिन्हाज और शॉन पाल के सुखी जीवन की कामना की और लल्लन के चाय की दूकान की तरफ बढ़ गया. डेविड अल्बर्ट जब लल्लन की दूकान की तरफ जा रहा था तभी उसने रास्ते में एक कुत्ते और एक कुतिये को चिपके हुए देखा. डेविड अल्बर्ट दिल का साफ़ और भोला होते हुए थोड़ा कमीन भी था इसलिए उसने दोनों चिपके बेजुबान जानवरों को देखकर मामले को भांप लिया था.

डेविड अल्बर्ट ने उस दिन दार्शनिकों के अंदाज में उस प्रेम के बंधन में जकड़े कुत्ते और कुतिये से कहा

” प्रेम शुरू में बहुत ही आनंदमयी प्रतीत होता है. इंसान को एकाएक ऐसा लगने लगता है की बस यही! बस यही तो मंजिल थी. यही तो था जो जीवन से मिस हो रहा था. प्रेम यहाँ से शुरू होकर ऐसे चरण में पहुंचता है की जब लगता है की ठीक है प्यार मोहब्बत सब कुछ ठीक है लेकिन अब क्या दिन भर तुम्हारा ही नाम जपते रहें. अरे, बर्बाद कर के धर दी हो. अब तुम ही बताओं क्या करें. ये चरण वही चरण है जिस चरण में तुम दोनों हो अभी. एक दुसरे से छूटना चाह रहे हो पर आसानी से छूटोगे नही. और दू तीन बाद जब छुट जाओगे तब एक जख्म लेके ही छूटोगे………”

इस से पहले की डेविड अल्बर्ट का प्रेम के दर्शनशास्त्र का यह अध्याय खत्म होता. डेविड अल्बर्ट के भाषण से क्रोधित हुए कुत्ते ने उन्हें काट लिया. कुत्ते के काटे जाने के बाद भी डेविड अल्बर्ट ज्यादा क्रोधित नही हुआ. डेविड अल्बर्ट ने जाते जाते-जाते उन दोनों को कहा “सुनो, चाहे वो कुत्ता हो या इंसान, जब खीज में होता है न तो काटने लगता है